नई दिल्ली, सितम्बर 15 -- एन के सिंह, अध्यक्ष, 15वां वित्त आयोग भारत अपने कर-ढांचे को सरल बनाने का लगातार प्रयास कर रहा है। प्रत्यक्ष करों को आसान बनाने में निस्संदेह उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिसका नतीजा नई आयकर संहिता के रूप में सामने आया। मगर अप्रत्यक्ष करों के मामले में स्थिति कहीं अधिक जटिल थी। दरअसल, उत्पाद शुल्क काफी अस्पष्ट थे और भारत के संघीय ढांचे के कारण इसकी कई दरें और भी जटिल हो गई थीं। नतीजतन, 1985 में तत्कालीन वित्त मंत्री वी पी सिंह ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का विचार सबसे पहले रखा था। साल 1986 में 'मोडवैट' (संशोधित मूल्य वर्धित कर) लागू किया गया, लेकिन यह सुधार अधूरा ही रहा। सन् 1991 के भुगतान संतुलन के संकट ने कर सुधार की बहस को फिर से छेड़ दिया, क्योंकि विश्व बैंक के 'ढांचागत समायोजन कर्ज' और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष क...