जहानाबाद, जुलाई 5 -- मुहर्रम ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का देता है हौसला कर्बला का जंग बताता है कि इस्लाम तलवार से नहीं, बल्कि इंसाफ़, सब्र और कुर्बानी से ज़िंदा रहता है काको, सैयद ताबिश इमाम। मुहर्रम की दसवीं तारीख, जिसे योमे आशूरा कहा जाता है, इस्लामी इतिहास का सबसे दर्दनाक और प्रेरणादायक दिन है। यह दिन इंसानियत, सच्चाई और इंसाफ की बुनियाद पर कायम एक ऐसी मिसाल है कि हर दौर में ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का हौसला देता है। तकरीबन 1400 साल पहले कर्बला की तपती सरजमीन पर नबी-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने 72 वफ़ादार साथियों के साथ हक की खातिर जान की कुर्बानी दी थी। ये जंग किसी सत्ता या सल्तनत की नहीं, बल्कि उस उसूल का था जिसमें सच्चाई और मानवता सर्वोपरि था। इ...