उन्नाव, मार्च 19 -- उन्नाव, संवाददाता। कभी घर के आंगन में फुदकते हुए आना, चींचीं और चक-चककर इधर-उधर से कुछ भी खा जाना और फिर थोड़ी सी आहट होते ही झुंड के साथ फुर्र उड़कर घर की मुड़ेल पर बैठ जाने वाली गौरैया अब बहुत कम दिखती है। आधुनिक और प्रकृति के विपरीत घरों का निर्माण, हरियाली का कम होना और फसलों में रासायनिक उर्वरकों की अधिकता की वजह से भी गौरैया की संख्या बहुत तेजी से घटी है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में गौरैया के संरक्षण के प्रयास भी तेज हुए हैं। घरों के सूने आंगन को गौरैया के फुदकने का फिर से इंतजार है। उप प्रभागीय वनाधिकारी एस के वर्मा बताते हैं कि प्राकृतवास का खत्म होना गौरैया के विलुप्त होने का एक बड़ा कारण है। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दुकानें घट रही हैं। इससे उन्हें दाना भी नहीं मिल पाता है। मोबाइल टावरों स...