गोरखपुर, नवम्बर 27 -- गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता पूर्वी यूपी में रहने वाले अंगदान और देहदान में फिस्सड्डी हैं। वह न तो स्वयं अंगदान कर रहे हैं और न ही दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं। जबकि मरने बाद होने वाले अंगदान से कम से कम दो लोगों के जीवन में नई रोशनी मिल सकती है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थान को पिछले एक वर्ष से न तो किसी ने अंगदान किया है और न ही देहदान। नतीजा यह कि न तो जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन मिल पा रहा है और न मेडिकल छात्रों को बेहतर चिकित्सक बनने के लिए आवश्यक शिक्षण सामग्री। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभाग के आंकड़े बताते हैं कि करीब 800 लोग कार्निया ट्रांसप्लांट के इंतजार में हैं। हर वर्ष एमबीबीएस छात्रों की पढ़ाई के लिए कम से कम 15 देहों की जरूरत होती है, जो अब तक पूरी नहीं हुई। मजबूरन बनारस की संस्था से बीआरडी ने स...