नई दिल्ली, अगस्त 24 -- भारतीय राजनीति में कभी यह परंपरा थी कि जैसे ही किसी मंत्री या सांसद पर गंभीर आपराधिक आरोप लगते या उनकी गिरफ्तारी होती, तो वह स्वेच्छा से पद छोड़ देता था। लालकृष्ण आडवाणी ने जैन हवाला कांड में नाम आते ही लोकसभा की अपनी सदस्यता त्याग दी थी और स्पष्ट कहा था कि दोषमुक्त होने तक संसद नहीं लौटेंगे। ऐसी परंपराएं राजनीतिक जीवन में नैतिकता को मजबूत करती थीं और जनता में उसके प्रति विश्वास बढ़ाती थीं। मगर आज स्थिति बदल गई है। अब नेता गंभीर मामलों में गिरफ्तार होने पर भी पद से चिपके रहते हैं। कुछ तो जेल में रहते हुए भी सरकार चलाने का दावा करते हैं। अरविंद केजरीवाल का उदाहरण सबके सामने है, क्योंकि उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए वाकई चिंता का विषय है, क्योंकि इससे शासन की विश्वसनीयता पर ...
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