नई दिल्ली, सितम्बर 19 -- काल और शून्य अनंत हैं। रेत के कण अनगिनत हैं। सृष्टि में अणु असंख्य हैं, तारे और आकाशगंगाएं भी। न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत, क्योंकि सब कुछ गोलाकार है। गोले का न तो कोई आरंभ होता है, न कोई अंत; न कोई लक्ष्य है, न ही दिशा। सत्य की कोई दिशा नहीं, कोई लक्ष्य नहीं। सत्य स्वयं ही लक्ष्य है, सत्य अनंत है। इस सीमित काया में अनंत को महसूस करना और अनुभव करना, जीवन के सीमित काल में ही कालातीत को अनुभव करना, दुख के अंतर्गत परमानंद को अनावृत करना इसी के लिए तुम यहां हो। जब ज्ञान का उदय होता है, यह उत्सव को जन्म देता है। परंतु उत्सव में तुम अपनी एकाग्रता या सजगता खो सकते हो। प्राचीन ऋषि-मुनि यह जानते थे, इसीलिए उत्सव के उन्माद के बीच सजगता बनाए रखने के लिए उन्होंने हर महत्वपूर्ण घटना के साथ पवित्रता और पूजा को जोड़ दिया। आश...