नई दिल्ली, जून 21 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार पुरानी बात है। अपने शहर हाथरस के बागला कॉलेज में हम एमए हिंदी के छात्र थे। आदिकालीन कवियों से लेकर आधुनिक साहित्यकारों को हम पढ़ते, प्रश्नोत्तर रटते, और स्वयं साहित्यकार बनने के सपने देखा करते। तब का हाथरस ब्रज के रसियों के अखाड़ों का शहर था। हास्य रस के आशु कवियों का शहर! काका हाथरसी और निर्भय हाथरसी का शहर और जिला अलीगढ़ में गीतों के बेताज बादशाह नीरज थे! तब फिल्म नई उमर की नई फसल का गाना कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे दिन भर बजा करता। हम अपने को एक दिन नीरज बनता देखते, साहिर लुधियानवी से टक्कर लेते देखते! तभी एक खबर आई, उपन्यासकार गुलशन नंदा को एक नया उपन्यास लिखने के लिए किसी फिल्म-निर्माता ने शिमला के एक बड़े होटल में टिकाया है। वह महीने भर में उसे लिखेंगे, फिर उस पर फिल्म बनेगी! खब...
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