वाराणसी, मई 2 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। 'तुम्हारे काव्य की हदबंदियां टूटेंगी, ग़ज़ल के शेर तने हैं मिसाइलों की तरह जैसे शेर कहने वाले आनंद परमानंद अहंकारशून्य साहित्यकार थे। उन्होंने निराले तेवर वाली अपनी ग़ज़लों से बेना, झापी जैसे लुप्त होते शब्दों को संजीवनी दी है। वहीं असहाय आदिवासियों के जीवन की उन विडंबनाओं को भी परोसा है जिसपर आज के कतिपय स्वार्थी राजनीतिज्ञों के अलावा कोई बोलने को तैयार नहीं है। यह किसी एक का वक्तव्य नहीं, उन सभी वक्ताओं के विचारों का सारांश है जो गुरुवार की शाम आनंद परमानंद की जयंती पर रथयात्रा स्थित कन्हैयालाल स्मृति भवन के सभागार में जुटे थे। डॉ. चंद्रकला त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुए समारोह में डॉ. मुक्ता, डॉ.बलराज पांडेय, डॉ.वशिष्ठनारायण त्रिपाठी, प्रो. श्रद्धानंद, डॉ. रामसुधार सिंह ने उनके सृजनात्मक जीवन क...
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