सुल्तानपुर, मार्च 8 -- सुलतानपुर, संवाददाता रोजे का मकसद मन को पाक करना है। जिस तरह जकात धन को पाक करता है, उसी तरह रोजा मन को पाक करता है। अल्लाह ताला ने तमाम पैगंबरों की उम्मतों पर रोजा फर्ज किया था। मदरसा इस्लाहुल मुस्लिमीन धरावां के मौलाना तुफैल अहमद कासमी ने बताया कि इंसान का जब मन पाक होगा तो उसका हर काम अच्छा होगा। दुनिया के जिस कोने में भी रहेगा इंसानियत के साथ अच्छा व्यवहार रखेगा। इंसानों के दुख और दर्द को समझेगा। खुद भला रहेगा दूसरों को भलाई सिखाएगा। इस्लाम का एक फरीजा रोजा रखना है, इस रोज से रोजेदार को भूखे की भूख का एहसास होता है जब बस्ती का पूरा माहौल रोजेदारों से भारा होगा तो एक समाज ऐसा तैयार होगा जो भूखे को खिलाने की तरफ आमदा होगा। समाज से भुखमरी खत्म होगी। लोगों की परेशानी का एहसास जिंदा होगा। रोजा इस्लाम की एक अहम इबादत ...