नई दिल्ली, अप्रैल 29 -- दुनिया कभी नहीं रही अराजकता और अव्यवस्था में, केवल मन रहा है। संसार तो परम रूप से व्यवस्थित है। यहां कोई अव्यवस्था नहीं, सुव्यवस्था है। केवल मन ही सदा अव्यवस्था में रहता है और सदा अव्यवस्था में ही रहेगा। कुछ बातें समझ लेनी होंगी। मन की प्रकृति ही होती है अराजकता में होने की। क्योंकि यह एक अस्थायी अवस्था है। मन तो मात्र एक संक्रमण है, स्वभाव से परम स्वभाव तक का। कोई अस्थायी अवस्था नहीं हो सकती है सुव्यवस्थित। कैसे हो सकती है वह सुव्यवस्था में? जब तुम बढ़ते हो एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक, तो बीच की स्थिति अव्यवस्था में, अराजकता में ही रहेगी। यह भी पढ़ें- ध्यान से ही जाग्रत होता है आत्मा का प्रकाश कोई उपाय नहीं है मन को सुव्यवस्थित कर देने का। जब तुम स्वभाव के पार हो रहे होते हो और परम स्वभाव में बढ़ रहे होते हो, बाह...
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