गंगापार, फरवरी 23 -- वसंत के मौसम में जहां दशकों पहले होली के महीनों पूर्व गांव-गिरांव में होलिका लगाने की तैयारी में बच्चे जी-जान से जुट जाते थे और गांव-गांव चौपालों में ढोल-मजीरे के साथ फगुहारों की टोलियां बैठकी करती थी वह रंगत अब आधुनिकता की चकाचौंध में नही दिखाई पड़ रही है। फगुहारों का अभाव तो दिखाई पड़ ही रहा है वहीं दूसरी ओर अब के युवा पीढ़ी में होलिका लगाने का उत्साह पहले जैसा नही दिखायी पड़ रहा है। करछना क्षेत्र के देवरी, महेवा, भड़ेवरा, भुंडा, बसही, कचरी, गलिवाबाद, हिंदूपुर, मनैया, कपठुआ, कपूर का पूरा आदि कई गांवों के फगुआ चौताल गाने वाले कई पुरनिया प्रसिद्ध थे। कई गांवों में इन्हे होली पर्व पर गीत गाने के लिए विशेष रूप से बुलाया जाता था। किंतु क्षेत्र के ज्यादातर गांवों में अब यह देखने को नही मिल रहा है। परंपरागत रुप से इस मौसम ...