सीतापुर, मार्च 13 -- पैंतेपुर, संवाददाता। हई न देख सखी फागुन के उत्पात, दिनवो लागे आजकल पिया मिलन के रात... यह गीत शायद अब आपको सुनाई न पड़ें। लेकिन एक दशक पहले फाल्गुन का महीना आते ही होली से पहले इस तरह के एक नहीं बल्कि कई गीत फाग गीत के रुप में सुनाई देते थे। समय बदलने के साथ त्योहार मनाने का तरीका भी बदल गया है। अब गांवों में फाग गाने की परंपरा लुप्त होती जा रही है। युवा मोहित मिश्रा बताते हैं कि जब हमारे बाबा जी थे तब माघ महीने से ही गांव में फागुनी आहट सुनाई देने लगती थी। लेकिन इस आधुनिकता के दौर में हमारी परंपरा निढाल हो गई हैं। फागुन महीने में शहरों से लेकर गांव तक फाग गाने और ढोलक की थाप सुनने को लोगों के कान तरस रहे है। ग्राम सैदनपुर सुरेश वर्मा ने बताया कि महाशिवरात्रि का पर्व आते-आते फाग गीतों की धूम मच जाती थी। ढोल, मंजीरे व ...
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