कानपुर, जुलाई 13 -- कानपुर देहात। भारत की संस्कृति व परंपराएं ही विश्व में अलग पहचान रखती हैं। यहां के सभी त्योहार कोई न कोई संदेश देते हैं। 21वीं सदी में भले ही तरक्की व नई ऊंचाइयों को छूने की बात हो रही है, लेकिन आधुनिकता की इस चकाचौंध में प्राचीन परंपराओं और संस्कृति को लोग भूलते जा रहे है।अब सावन के गीत व सार्वजनिक झूलों को लोग भूल चुके हैं। सिर्फ गांवों में बुजुर्ग महिलाएं बच्चों के जरिए ही झूलों की परंपरा को बचाए हुए हैं। एक समय था जब सावन माह शुरू होते ही घर के आंगन व पास में लगे पेड़ों पर झूले पड़ जाते थे और महिलाएं गीतों के साथ झूलों का आनंद उठाती थीं। समय के साथ पेड़ गायब होते गए। आंगन का अस्तित्व भी लगभग समाप्त होने की कगार पर है। ऐसे में सावन के झूले भी इतिहास बनकर हमारी परंपरा से गायब हो रहे हैं। उत्साह और उमंग भर देने वाला सावन...