नई दिल्ली, जून 7 -- वह 12 मई, 1947 का सरगोशी भरा दिन था। ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली अपने सरकारी आवास- 10, डाउनिंग स्ट्रीट के बैठकखाने में कुछ फौजियों के साथ बैठे थे। इनमें तीनों सेनाओं के चीफ ही नहीं, बल्कि दूसरे विश्व-युद्ध के महानायक फील्ड मार्शल बर्नार्ड लॉ मोंटगोमरी भी थे। विदेश नीति के कुछ जानकार भी इस बातचीत का हिस्सा थे। मुद्दा था, भारत की आजादी और उसका विभाजन। बरतानवी इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान अदा करने वाले इन लोगों का मानना था कि भारत स्वभाव से समाजवादी किस्म का देश है। यदि हमने उसे जस का तस आजाद कर दिया, तो हो सकता है कि मॉस्को से चली वामपंथी आंधी हिंद महासागर तक पहुंच जाए। यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद को गहरा झटका होगा। ये महानुभाव चाहते थे कि भारत और सोवियत संघ के बीच एक ऐसा 'बफर स्टेट' बने, जो पश्चिम के कहने पर चले। यही व...
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