नई दिल्ली, जून 21 -- वह 1976 की गर्मियां थीं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी शहर में एक रसूखदार की कोठी में ढलती शाम तमाम लोग गप-शप के लिए इकट्ठा थे। उसी वक्त गमछे में मुंह लपेटे एक कृशकाय शख्स अचानक प्रकट हुआ और गृहस्वामी के पांव जकड़कर बैठ गया। उसकी दुर्बल काया पीपल के पीले पत्ते की तरह कांप रही थी। वह हमारे गांव के पास का एक धोबी था। उसने रोते हुए अपनी दर्दनाक दास्तां शुरू की- कुछ दिनों पहले मेरा गांव के किसी व्यक्ति से मामूली सा विवाद हुआ था। जिससे झगड़ा हुआ, उसका रिश्तेदार पुलिस में दारोगा है। कुछ दिन बाद मेरे घर पर पुलिस के एक दस्ते ने छापा मारा। मुझ पर आरोप है कि मैंने 'सशस्त्र क्रांति लाने के उद्देश्य से रेल की पटरियां उखाड़ने की साजिश' रची। वह इन शब्दों का सही उच्चारण तक नहीं कर पा रहा था, क्योंकि महज दो दिन पहले तक ये अल्फाज उसकी जानकारी ...