नई दिल्ली, अक्टूबर 29 -- मानव मन या तो अतीत होता है या भविष्य। वर्तमान में मन की कोई सत्ता नहीं। और मन ही संसार है इसलिए वर्तमान में संसार की कोई सत्ता नहीं। और मन ही समय है, इसलिए वर्तमान में समय की भी कोई सत्ता नहीं। अतीत का वस्तुतः कोई अस्तित्व नहीं है, सिर्फ स्मृतियां हैं। जैसे रेत पर छूटे हुए पगचिह्न। चित्त पर जो बीत गया है, व्यतीत हो गया है, उसकी छाप रह जाती है। उसी छाप में अधिकतर लोग जीते हैं। अब जो नहीं है, उसमें जिएंगे, तो आनंद कैसे पाएंगे? प्यास तो है वास्तविक और पानी पीएंगे स्मृतियों का, तो बुझेगी प्यास? धूप तो है वास्तविक और छाता लगाएंगे कल्पनाओं का, रुकेगी धूप उससे? अतीत का कोई अस्तित्व नहीं। वह जा चुका, मिट चुका। मगर हम जीते हैं अतीत में, और इसीलिए हमारा जीवन व्यर्थ, अर्थहीन, थोथा है। हम जीते तो हैं, मगर जी नहीं पाते हैं। जी...