नई दिल्ली, अक्टूबर 27 -- हमें अपने चारों ओर और खुद के भीतर भी अंतर्विरोध नजर आता है। चूंकि हम अंतर्विरोध में जीते हैं, हमारे अंदर शांति का अभाव है, और इसीलिए बाहर भी ऐसा ही है। हम क्या होना चाहते हैं और क्या हैं, इसी दुविधा में लगातार डोलते रहते हैं। यह एक सीधा, स्पष्ट तथ्य है कि अंतर्विरोध की स्थिति द्वंद्व पैदा करती है और जहां द्वंद्व है, वहां शांति नहीं हो सकती। इस भीतरी अंतर्विरोध को किसी दार्शनिक द्वैतवाद के रूप में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसा समझना, उससे पलायन करने का सरल तरीका होगा। अंतर्विरोध द्वैत की ही एक अवस्था है, ऐसा कहने से हमें लगता है कि समस्या हल हो गई। मगर यह समाधान एक समझौता भर है, जो बस वास्तविकता से पलायन में मदद करता है। हममें अंतर्विरोध क्यों है? हम जो कुछ हैं, उससे भिन्न होने की चाह का यह अंतहीन संघर्ष क्यों है? ह...
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