सिमडेगा, नवम्बर 2 -- सिमडेगा के गांव के आंगनों में जब गोबर से लीपकर जमीन चमकती है और सफेद आटे या चावल के पाउडर से अंगुलियों के निशान पर चित्र उभरते हैं, तब समझिए कि कोई शुभ काम होने वाला है। हम बात कर रहे हैं "चौक पुरने" की एक ऐसी पारंपरिक चित्रकला की, जो आज भी जिले में हर शुभ अवसर का पहला चरण माना जाता है। शादी विवाह, सोहराई, देवउत्थान एकादशी, मुंडन अथवा अन्य कई पूजा में आज भी सबसे पहले चौक पुरा जाता है। लोगों की मानें तो पूजा या शुभ काम के दिन जब आंगन में चौक पुरा जाता तो घर के माहौल में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव भी होता है। कई स्थानों में तो इस कला को बच्चे भी सीखने लगे हैं। बताया गया कि शादी-विवाह में चौक पुरने वाली महिलाओं को दक्षिणा देना एक पुरानी परंपरा है। यह केवल मेहनताना नहीं बल्कि एक नेग होता है। 65 वर्षीय एतवारी देवी न...