बैतूल , अक्टूबर 10 -- छह साल की लंबी जुदाई के बाद गुरुवार को जब 13 वर्षीय अजय (नाम परिवर्तित) अपनी मां की गोद में लौटा, तो पूरा माहौल भावनाओं से भर गया। उसकी आंखों से जैसे बरसों का दर्द बह निकला। बैतूल जिले के इस मासूम को महज 50 हजार रुपये के कर्ज ने बचपन से छीन लिया था।
वर्ष 2019 में अजय का परिवार मजदूरी के लिए हरदा जिले के झिरीखेड़ा गांव गया था। उस समय परिवार ने ठेकेदार से 50 हजार रुपये उधार लिए थे। दो साल बाद जब लौटने की बात आई, तो ठेकेदार ने हिसाब बढ़ाकर कर्ज 60 हजार रुपये बताया और पैसे न देने पर बच्चे को अपने पास रख लिया। मजबूर माता-पिता बेटे को वहीं छोड़कर लौट आए।
इसके बाद अजय का बचपन मजदूरी की जंजीरों में बंध गया। ठेकेदार ने उससे खेतों में काम कराया, मवेशी चरवाए और घर के काम करवाए। बदले में उसे केवल दो वक्त का भोजन और लगातार मेहनत का दर्द मिला।
लगातार छह साल तक बंधक जीवन झेलने के बाद 11 सितंबर 2025 की रात जन साहस संस्था, श्रम विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और पुलिस की संयुक्त टीम ने हरदा जिले में छापा मारकर बच्चे को मुक्त कराया। लेकिन दस्तावेज न होने के कारण उसे छिंदवाड़ा के बालगृह में भेजा गया।
करीब 20 दिन की कानूनी प्रक्रिया के बाद 9 अक्टूबर को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने आवश्यक दस्तावेज पूरे होने पर आदेश जारी किया और गुरुवार को बच्चे को उसकी मां के सुपुर्द कर दिया गया।
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