नयी दिल्ली , नवंबर 12 -- शरीर के किसी भाग में बाहर से बैक्टीरिया डालने की बात सुन कर किसको डर नहीं लगेगा? कारण है कि बैक्टीरिया की बात होते ही उससे पैदा होने वाली न्यूमोनिया और हैजा जैसी गंभीर बीमारियां याद आ जाती हैं । लेकिन अब कैंसर जैसी दुस्साध्य बीमारी से लड़ाई में बैक्टीरिया को एक कारगर हथियार के रूप में विकसित किया जा रहा है।
वैज्ञानिक कैंसर के इलाज में बैक्टीरिया के प्रयोग पर काम कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि वे जल्द ही बैक्टीरिया को इस प्रकार साधने में सफल हो जाएगे कि शरीर में डाले गये बैक्टीरिया कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को तेजी से ढूंढ-ढूंढ कर नष्ट करने वाली जीती-जागती मशीन बन जाएंगे। यही नहीं, बैक्टीरिया अपना काम पूरा कर बिना कोई और असर छोड़े लुप्त हो जाएंगे।
वेबसाइट 'द कन्वर्सेशन' में प्रकाशित जोसेफिन राइट और सुसन वुड्स की एक अनुसंधान रिपोर्ट में बैक्टीरिया से कैंसर चिकित्सा जैसे इस जटिल विषय पर प्रकाश डाला गया है। श्री राइट साउथ ऑस्ट्रेलियन हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में एक वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता हैं। सुश्री सूसन वुड्स आस्ट्रेलिया के ही एडीलेड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और अनुसंधानकर्ता हैं। वह साउथ ऑस्ट्रेलियन हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर औषधि पर अनुसंधान करती है।
वेबसाइट में प्रकाशित दोनों कैंसर चिकित्सा वैज्ञानिकों के लेख के अनुसार कैंसरग्रस्त ट्य़ूमर (गांठें) कई तरह के होते हैं और उनमें से अधिकांश का इलाज बहुत मुश्किल होता है। कई बार कैंसर कुछ समय के लिए ठीक होने के बाद फिर से उभर जाते हैं क्योंकि शरीर में कैंसर का शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से युद्ध चलता रहता है।कई कैंसर इलाज के विरुद्ध अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं ।
इन वैज्ञानिकों का कहना है कि बैक्टीरिया से कैंसर का इलाज आसान और अधिक कारगर हो जाएगा। उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया है कि करीब सौ वर्ष पूर्व कैंसर का इलाज करने के दौरान चिकित्सा विशेषज्ञों ने पाया था कि कुछ कैंसर रोगी जो बैक्टीरिया संक्रमित हो गये थे उनमें कैंसर के लक्षण अप्रत्याशित रूप से घट गए या समाप्त हो गए थे।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने अब उस बात पर अनुसंधान एवं अध्ययनों के माध्यम से उसके कारणों का पता लगा लिया है। लेख में मोटे तौर पर यह कहा गया है कि कैंसर के मरीज रोग की प्रतिरक्षा प्रणाली को बैक्टीरिया अपनी गतिविधियों से सक्रिय कर देते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर कोशिकाओं पर हमला कर देती है। मूत्राशय कैंसर के कुछ मामलों में इस प्रक्रिया को पहले से इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें जब चिकित्सक कैथेटर के जरिए मूत्राशय में माइकोबैक्टीरियम बोविस का एक अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली संस्करण प्रविष्ट कराते हैं तो मरीज के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है और कैंसर की कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देती है।
कुछ बैक्टीरिया ठोस कैंसर गांठ और उसके ऊतकों के अंदर तो विकसित हो जाते हैं, लेकिन वे स्वस्थ् ऊतकों के भीतर नहीं जाते। दरअसल इन बैक्टीरिया को अपने पनपने के लिए जरूरी पोषक तत्व ठोस कैंसर की मृत कोशिकाओं से मिलते हैं। कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है जिससे वे इन बैक्टीरिया का मुकाबला नहीं कर पातीं। ऐसे बैक्टीरिया की यही विशेषताएं कैंसर के उपचार में उन्हें हथियार के रूप में उपयोग किये जाने का मुख्य आधार हैं ।
संदर्भ के तौर पर बताया गया है कि पिछले करीब 30 वर्षों में इस क्षेत्र में 500 से ज्यादा शोध पत्र आ चुके हैं और 70 क्लीनिकल ट्रायल हुए हैं। इसके साथ ही 24 स्टार्टअप कंपनियों ने बैक्टीरिया आधारित कैंसर चिकित्सा पर ध्यान केंद्रित किया है। शुरुआती परीक्षणों के परिणाम आशाजनक बताये गये हैं। अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि चिकित्सा विज्ञान कैंसर जैसे रोग को बैक्टीरिया के प्रयोग से परास्त करने के कितने करीब है, लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि पिछले पांच वर्षों में कैंसर की बैक्टीरिया-चिकित्सा में दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान की दिलचस्पी बढ़ी है।
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