भोरंज , अक्टूबर 20 -- हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का एक छोटा और सुदूर गांव है सम्मू, जहां दिवाली का कोई भी उत्सव नहीं मनाया जाता। अगर कोई व्यक्ति या परिवार दिवाली मनाने की कोशिश करता भी है, तो वह अपने और अपने परिवार के लिए 'शापित' माना जाता है।

हमीरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर भोरंज प्रखंड में बसे इस गांव का दौरा करने पर पता चलता है कि वहां रहने वाले लोग दिवाली मनाने के बजाय दूसरे काम निपटा रहे होते हैं। पीढ़ियों से ग्रामीण दिवाली के त्योहारों से परहेज करते आ रहे हैं। यह मानते हुए कि उनका समुदाय शापित है, जिससे वे त्योहार नहीं मना पाते। ग्रामीणों का कहना है कि यदि वे दिवाली मनाने की कोशिश करते हैं, तो वहां त्रासदियां होती हैं, जिनमें असामयिक मौतें भी शामिल हैं।

दिवाली के प्रति उनकी यह धारणा सदियों पहले हुई एक दुखद घटना में निहित है। स्थानीय लोगों के अनुसार एक महिला को अपने सैनिक पति की मृत्यु का जब पता चला, तो वह गांव को शाप देते हुए 'सती' हो गई थी। ऐसा माना जाता है कि निराशा के उस दौर ने इस समुदाय को दिवाली उत्सव को हमेशा के लिए भुला देने के लिए मजबूर कर दिया। उस दिन के बाद से ग्रामीण इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं क्योंकि उन्हें इसके उल्लंघन के दुष्परिणामों का गहरा डर है।

सम्मू निवासी बिधि चंद ठाकुर, जिन्होंने 72 से अधिक दिवाली देखी हैं, कहते हैं कि जब भी किसी ने गांव में दिवाली मनाने की कोशिश की, उसे किसी न किसी हानि का सामना करना पड़ा। यही भावना कई ग्रामीणों की भी है, जो 'अभिशाप का शिकार होने का जोखिम' उठाने के बजाय त्योहार के दौरान घर के अंदर रहना पसंद करते हैं।

हवन-यज्ञ जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से अभिशाप को समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद ग्रामीणों का कहना है कि ये प्रयास विफल रहे हैं, जिससे उनकी परंपराओं के पालन में उनका विश्वास और गहरा हुआ है। समुदाय की सामूहिक स्मृति उन्हें अपने रीति-रिवाजों से बांधे रखती है, जबकि युवा पीढ़ी इस चक्र से मुक्त होना चाहती है।

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