नैनीताल , नवम्बर 19 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपात्र दिव्यांग प्रमाण पत्रों के ज़रिए शिक्षा विभाग में आरक्षण का लाभ ले रहे कई कार्मिकों के प्रमाण पत्रों की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए राज्य आयुक्त दिव्यांगजन को एक सप्ताह में जांच कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
उत्तराखंड नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में सुनवाई हुई। आयुक्त आज दिव्यांगजन उच्च न्यायालय में पेश हुए।
आयुक्त की ओर से कहा गया कि उन्होंने हाल ही में इस पद की जिम्मेदारी संभाली है। उन्होंने अदालत से इस प्रकरण की जांच के लिए समय की मांग की। इस मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता गौरव पालीवाल ने बताया कि इसके बाद अदालत ने एक सप्ताह में जांच कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश दे दिए।
दायर जनहित याचिका में कहा गया कि अपात्र लोग धोखाधड़ी से दृष्टिबाधित दिव्यांग कोटे के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवार अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं। लेकिन इस मामले में प्रशासनिक स्तर पर शिकायतें करने के बावजूद कोई ठोस और पारदर्शी कार्रवाई नहीं हो सकी।
याचिका में कहा गया है कि राज्य मेडिकल बोर्ड में वर्ष 2022 में हुए मूल्यांकन में शिक्षा विभाग के दिव्यांग श्रेणी के कई कर्मचारी मेडिकल जाँच के लिए जानबूझकर उपस्थित नहीं हुए, जिससे उनके प्रमाण पत्रों के जाली होने का गहरा संदेह पैदा होता है।
इससे पहले यह भी कहा गया कि राज्य बनने के बाद शिक्षा विभाग में अध्यापकों और लिपिक वर्गीय श्रेणी में दिव्यांग आरक्षण के तहत 52 पदों के सापेक्ष 13 नियुक्तियां मेडिकल बोर्ड द्वारा सही पाई गई हैं जबकि शेष कार्मिक वर्ष 2022 में मेडिकल बोर्ड द्वारा पुनः कराए गए मूल्यांकन में या तो अनुपस्थित रहे या फिर उनके प्रमाण पत्रों में भिन्नता थी और कुछ को दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया।
यह भी कहा गया कि इस मामले में राज्य आयुक्त से भी शिकायत की गई लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया और एम्स ऋषिकेश से पुनर्सत्यापन की मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित