नैनीताल , दिसंबर 12 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें एक वन अधिकारी की पदोन्नति को इस आधार पर रोक दिया गया था कि पदोन्नति प्रक्रिया से पहले उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया था।
अदालत ने कहा कि चूंकि विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक के बाद ही कर्मचारी को आरोप पत्र सौंपा गया था, इसलिए पदोन्नति को रोका नहीं जा सकता था।
वन अधिकारी कुलदीप सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी ने गुरुवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा पूर्व निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों के आलोक में राज्य द्वारा उनकी पदोन्नति को निलंबित करने की कार्रवाई उचित नहीं थी।
याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने बताया कि कुलदीप सिंह ने 1995 में वन विभाग में वनपाल के रूप में कार्यभार संभाला और 2013 में उप वन रेंजर के पद पर पदोन्नत हुए। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (यूकेपीएससी) की सिफारिश पर, उन्हें 10 जून, 2024 को वन रेंज अधिकारी (एफआरओ) के पद पर पदोन्नत किया गया और उन्होंने 12 जून को कार्यभार ग्रहण किया। उन्होंने कहा, "हालांकि, दो दिन बाद, 14 जून को सरकार ने एक आदेश जारी कर उनकी पदोन्नति को इस आधार पर स्थगित कर दिया कि चार मई को उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया था।"श्री नेगी ने तर्क दिया कि यद्यपि आरोपपत्र पर चार मई की तिथि अंकित थी लेकिन याचिकाकर्ता को यह छह मई को हुई डीपीसी बैठक के बाद 13 मई को ही सौंपा गया। उन्होंने कहा, "इसलिए, बैंक ऑफ इंडिया बनाम डेगला सूर्यनारायण (1999) और यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के.वी. जानकीरामन (1991) मामलों में शीर्ष अदालत के निर्णय के तहत पदोन्नति को रोका नहीं जा सकता है।"डेगाला सूर्यनारायण फैसले के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही केवल आरोपपत्र सौंपे जाने पर ही प्रारंभ मानी जाती है, न कि उसके तैयार किए जाने की तिथि पर। यदि किसी उम्मीदवार को पदोन्नति के लिए विचार किए जाने की तिथि पर कोई कार्यवाही लंबित नहीं है, तो बाद में केवल इसलिए लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि आरोपपत्र पहले जारी किया गया था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यूकेपीएससी को राज्य सरकार द्वारा एक प्रमाण पत्र प्रदान किया गया था जिसमें कहा गया था कि डीपीसी बैठक के समय याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित नहीं थी। अपने प्रतिवाद में आयोग ने पुष्टि की कि उसे छह मई तक, जिस दिन समिति की बैठक हुई और सिंह के नाम की पदोन्नति के लिए सिफारिश की गई, आरोपपत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी।
याचिकाकर्ता के तर्कों को सही पाते हुए, न्यायालय ने माना कि पदोन्नति रोकने के लिए राज्य का तर्क अपर्याप्त है। न्यायालय ने टिप्पणी की, "चूंकि याचिकाकर्ता के पदोन्नति के दावे पर उस समय विचार किया गया था जब उसे कोई आरोपपत्र नहीं दिया गया था, इसलिए केवल इस आधार पर लाभ रोकना कि आरोपपत्र पहले जारी किया गया था, उचित नहीं है।"उच्च न्यायालय ने राज्य को विस्तृत प्रतिवाद दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई 16 फरवरी, 2026 को सूचीबद्ध की। तब तक, न्यायालय ने आदेश दिया कि 14 जून के आदेश का प्रभाव और संचालन स्थगित रहेगा।
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