लखनऊ , अक्टूबर 15 -- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवायी के दौरान दाखिल हुए जवाबी हलफनामे में पूरी जानकारी न होने पर नाराजगी जतायी है।
कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यही होता है जब निचले स्तर के अधिकारी राज्य सरकार के स्थान पर जवाबी हलफ़नामा दाखिल करते हैं। कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ माध्यमिक शिक्षा निदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के जरिए अगली सुनवायी पर 26 नवंबर को उपस्थित होने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय एवं न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने यह आदेश पूर्णिमा शुक्ला याचिका पर दिया है। प्रतापगढ़ जिले के इस मामले में एक अनुदानित विद्यालय की प्रबन्ध समिति पर मनमाने ढंग से अपने परिजनों की नियुक्ति करने तथा नियमों की अनदेखी करने के आरोप लगाए गए हैं। याचिका में विद्यालय की अनुदान राशि को रोकने की भी मांग की गई है।
याचिका पर दाखिल जवाबी हलफनामे में यह स्वीकार किया गया कि प्रबन्ध समिति के सदस्य आपस में घनिष्ठ संबंधी हैं और उन्होंने प्रधानाचार्य एवं सहायक अध्यापकों को हटाकर अपने परिजनों की नियुक्ति कर ली है। यह भी कहा गया कि नियुक्तियाँ नियमों के विपरीत की गई हैं और न तो पूर्व अनुमति ली गई, न ही रिक्तियों का प्रकाशन समाचार पत्रों में किया गया। बताया गया कि प्रतापगढ़ के डीआईओएस ने एडीआईओएस से जांच कराई थी। जिसकी रिपोर्ट 4 जून 2011 को प्रस्तुत की गई, इसके बाद डीआईओएस ने रिपोर्ट को प्रयागराज के उप शिक्षा निदेशक को भेजा। कोर्ट ने पाया कि इसके आगे की कार्रवाई के संबंध में कोई विवरण उक्त जवाबी हलफनामे में प्रस्तुत नहीं किया गया।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित