(महेंद्र वैद्य से)नयी दिल्ली , दिसंबर 25 -- बंगलादेश में 17 साल के निर्वासन के बाद गुरुवार को बंंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता तारिक रहमान की घर वापसी देशवासियों के लिए एक 'मसीहा' के अपने वतन लौटने की तरह देखी जा रही है।

श्री रहमान के पांव अपने मुल्क की धरती पर ऐसे समय पर पड़े हैं जब देश में हिंसा की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं और आम चुनाव की घड़ियां नजदीक आती जा रही हैं। दो बार की प्रधानमंत्री खालिदा जिया और दिवंगत राष्ट्रपति जियाउर रहमान के बड़े बेटे तारिक की राजनीति में दोबारा वापसी पर उनके आगमन का भले ही जोशो खरोश से इस्तकबाल किया गया हो लेकिन विशेषज्ञों की नजर में सत्ता तक पहुंचने का उनका रास्ता अनिश्चितताओं से भरा है।

गौरतलब है कि वर्तमान में अंतरिम मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस सहित कई ताकतें सक्रिय हैं, जिन्हें उन छात्र नेताओं का समर्थन मिला हुआ है और इनके विरोध प्रदर्शनों ने शेख हसीना को सत्ता छोड़ने पर मजबूर किया था। इनमें से कई छात्र नेताओं का झुकाव कट्टरपंथी इस्लामवादियों की ओर है। ये वर्तमान में पूरी तरह सक्रिय हैं और नेशनल सिटीजन्स पार्टी (एनसीपी) का नेतृत्व कर रहे हैं। श्री यूनुस के आशीर्वाद से बनी यह पार्टी उनका राजनीतिक कवच है। अपने कट्टरपंथी रुझान के कारण इस बात की संभावना कम है कि यह पार्टी रहमान की वापसी को सहजता से लेगी, क्योंकि बीएनपी खुद राष्ट्रवादी भावनाओं के दोहन की राजनीति करती है।

बीएनपी ने मुख्यधारा के सबसे बड़े इस्लामी दल 'जमात-ए-इस्लामी' के साथ गठबंधन किया है। यह कदम उन लोगों के लिए एक बड़ी बाधा की तरह है जो चाहते हैं कि जुलाई 2024 के विरोध प्रदर्शनों के बाद होने वाले चुनाव उनकी भूमिका को पुख्ता करें।

आज भले ही लोग तारिक को लेकर जज्बाती हो रहे हों लेकिन वह 2001 से 2006 तक बेगम जिया के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान एक समानांतर शक्ति केंद्र के रूप में विवादित भी रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा, उन पर बंगलादेश के इस्लामी कट्टरपंथ और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) तथा हरकत-उल-जिहाद इस्लामी (हूजी) जैसे संगठनों के उभार के पीछे होने के आरोप लगे।

तारिक पर 21 अगस्त 2004 को तत्कालीन विपक्षी अवामी लीग की रैली पर हुए ग्रेनेड हमले के लिए मुकदमा चलाया गया था। आतंकवाद के विरोध में आयोजित इस रैली में वरिष्ठ नेता आइवी रहमान सहित 24 लोग मारे गए थे। शेख हसीना इस हमले में बच गई थीं, लेकिन उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हुई थी। हालांकि बेगम जिया को बाद के वर्षों में हसीना शासन ने प्रताड़ित किया, लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि तारिक के बुरे दिन मुख्य रूप से 2006-2008 के सैन्य समर्थित कार्यवाहक शासन के दौरान आए जब उन्हें जेल भेजा गया, दोषी ठहराया गया और कथित तौर पर प्रताड़ित किया गया। रिहा होने के बाद, वे 2008 में लंदन चले गए। उनके समर्थकों का कहना है कि यह तत्कालीन सरकार की "माइनस-टू" रणनीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य खालिदा और हसीना दोनों को देश से बाहर करना था, लेकिन यह विफल रहा और 2008 के अंत में चुनाव कराने पड़े, जिसमें जीतकर हसीना ने 2024 तक शासन किया।

शेख हसीना के देश से चले जाने बाद के बंगलादेश में ऐसी खबरें हैं कि सेना का एक खास वर्ग जो यूनुस का समर्थन करता है, वे तारिक पर भरोसा नहीं करते हैं। हालांकि, राजनीतिक संदर्भ में, क्योंकि उनकी माँ खालिदा गंभीर रूप से बीमार हैं, तारिक को उस राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है जो सीधे तौर पर शेख हसीना और अवामी लीग का विरोध करती है। यह वर्तमान शासकों के अनुकूल भी है, जो हसीना और अवामी लीग को चुनावी मैदान से बाहर रखना चाहते हैं।

यूनुस सरकार ने न केवल वेंटिलेटर पर रहीं बेगम जिया के इलाज के लिए प्रयास किए, बल्कि तारिक की वापसी के लिए बड़े स्वागत समारोह का आयोजन कर उनकी राह भी आसान की है। इस प्रोत्साहन के साथ, उम्मीद है कि तारिक अपनी पार्टी के माध्यम से एक संगठित अभियान शुरू करेंगे। वे सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वे अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता को वोटों में कैसे बदलते हैं।

फिर भी, यह आसान नहीं होगा। हसीना के हटने के तुरंत बाद बीएनपी को सत्ता की सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। प्रतिद्वंद्वी अवामी लीग के चुनावी मैदान से बाहर होने से यह संभावना और प्रबल हुई थी। हालांकि, जैसे-जैसे 2025 समाप्त हो रहा है और चुनाव में केवल दो महीने बचे हैं, वह लाभ अब अनिश्चित लग रहा है। कभी बीएनपी की सहयोगी रही जमात-ए-इस्लामी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। साथ ही, जमात को छात्र नेतृत्व वाली एनसीपी से चुनौती मिल रही है, जो मुख्यधारा के दलों पर अविश्वास करती है। इस महीने की शुरुआत में अपने एक नेता शरीफ ओसामा हादी की नृशंस हत्या के बाद उपजी सहानुभूति एनसीपी की स्थिति मजबूत करती है, लेकिन यह इस्लामवादी खेमे को विभाजित भी करती है।

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