बेंगलुरु , नवंबर 09 -- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति के लिए भारत को "पाकिस्तान की समझ में आने वाली भाषा में बात करनी चाहिए", जिसमें शक्ति, आत्मनिर्भरता और प्रभावी ढंग से जवाब देने की क्षमता का समावेश हो।
श्री भागवत संघ स्थापना के 100 वर्ष पूरे पर होने के उपलक्ष्य में बेंगलुरु में आयोजित व्याख्यान शृ्ंखला के तहत एक कार्यक्रम को संबाेधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत अपनी ओर से शांति बनाए रख सकता है, लेकिन स्थायी स्थिरता पाकिस्तान की पारस्परिक प्रतिक्रिया की इच्छा पर निर्भर करेगी।
उन्होंने अगले दशक में द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता प्राप्त करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसमें तैयारी, प्रतिरोध और रचनात्मक जुड़ाव पर ज़ोर दिया गया।
उन्होंने कहा, "जब तक पाकिस्तान भारत को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां जारी रखेगा, इसलिए शांति के किसी भी दृष्टिकोण में तत्परता, दृढ़ता और सहयोग का समावेश होना चाहिए।"श्री भागवत ने ज़ोर देकर कहा, "हमें पाकिस्तान की समझ में आने वाली भाषा में बात करनी होगी जो ताकत, आत्मनिर्भरता और प्रभावी ढंग से जवाब देने की क्षमता है और तभी शांति स्थायी हो सकती है।"उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत को एक ईमानदार और सहयोगी पड़ोसी बने रहना चाहिए और अपने हितों की रक्षा करते हुए पाकिस्तान की प्रगति का समर्थन करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "समय के साथ यह दृष्टिकोण पाकिस्तान को संघर्ष का स्रोत बनने के बजाय भारत की प्रगति के साथ जुड़ा एक शांतिपूर्ण पड़ोसी बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।"श्री भागवत ने भारत की ओर से शांति बनाए रखने, किसी भी विश्वासघात का मुक़ाबला करने के लिए तैयार रहने और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए रचनात्मक रूप से बातचीत करने का एक समग्र रणनीतिक संयोजन बताया।
श्री भागवत ने रोहिंग्याओं सहित अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक, प्रशासनिक और सामाजिक चुनौतियों का उल्लेख करते हुये कहा कि कुछ स्थानों पर सीमा क्षेत्रों में कमजाेर सुरक्षा स्थितियों का फायदा उठाकर घुसपैठ की जा रही है।
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