चेन्नई , नवंबर 25 -- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने की उच्चतम न्यायालय के फैसले पर चिंता जताते हुए मंगलवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009 और राष्ट्रीय शिक्षा परिषद अधिनियम (एनसीटीई) अधिनियम 1993 में उपयुक्त रूप से संशोधन करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो शिक्षक 23 अगस्त, 2010 को सेवा में थे, उन्हें विधिवत संरक्षण मिले। उन्होंने कहा कि यह स्कूल शिक्षा प्रणाली के कामकाज को अस्थिर करने का एक गंभीर जोखिम पैदा करता है।

श्री स्टालिन ने श्री मोदी से देश भर के लाखों शिक्षकों को प्रभावित करने वाले इस महत्वपूर्ण मामले को हल करने में समर्थन मांगते हुए कहा कि 01.09.2025 के हालिया उच्चतम न्यायालय के फैसले में यह आवश्यक है कि सभी सेवारत शिक्षक जिन्होंने टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया है, उन्हें सेवा में बने रहने के लिए दो साल के भीतर ऐसी योग्यता प्राप्त करनी होगी। यहां तक कि ऐसे शिक्षक जिनकी सेवा पांच साल से कम बची है, उनकी सेवा हालांकि जारी रहेगी, लेकिन जब तक वे टीईटी उत्तीर्ण नहीं करते तब तक वे पदोन्नति के लिए पात्र नहीं होंगे।

श्री स्टालिन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शुरू में 23 अगस्त, 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी जैसी नई योग्यता आवश्यकताओं से छूट दी थी, हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने पिछली छूट को दरकिनार करते हुए इन मौजूदा शिक्षकों के लिए भी टीईटी को अनिवार्य कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि परिणामस्वरूप इन शिक्षकों को अब दो साल के भीतर टीईटी पास करना होगा या अपनी नौकरी खोना पड़ेगा, जिससे महत्वपूर्ण प्रशासनिक और व्यक्तिगत कठिनाई पैदा होगी।

श्री स्टालिन ने पांच साल से कम सेवा वाले शिक्षकों पर बोलते हुए कहा कि सेवा शर्तों में इस तरह के बदलाव और नियुक्ति के बाद पदोन्नति की उनकी वैध अपेक्षा को बाधित करना निश्चित रूप से उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह सीधे तौर पर शिक्षकों के एक बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करता है जो अपनी नियुक्ति के समय लागू वैधानिक नियमों के तहत पूरी तरह से पात्र और उचित रूप से योग्य थे तथा जिन्हें विधिवत रूप से भर्ती किया गया था।

श्री स्टालिन ने, यह देखते हुए कि अकेले तमिलनाडु में लगभग चार लाख शिक्षक इस श्रेणी में आते हैं, कहा कि इन शिक्षकों ने उस समय निर्धारित सभी शैक्षणिक और पेशेवर योग्यताओं को पूरा किया था। उन्हें वैध और कठोर प्रक्रियाओं के माध्यम से भर्ती किया गया था। उन्होंने 2011 में टीईटी की शुरुआत से कई साल पहले सेवा में प्रवेश किया था।

मुख्यमंत्री ने उल्लेख किया कि सेवा में बने रहने और पदोन्नति के लिए पात्रता दोनों के लिए इस समूह पर टीईटी का पिछली तारीख से लागू होना लंबे समय से स्थापित सेवा अधिकारों में एक महत्वपूर्ण व्यवधान पैदा करता है। यह राज्य के लिए एक प्रशासनिक दिक्कतें पैदा करता है। साथ ही, स्कूल शिक्षा प्रणाली के कामकाज को अस्थिर करने का एक गंभीर जोखिम पैदा करता है।

श्री स्टालिन ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों को बदलना किसी भी राज्य के लिए संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आरटीई अधिनियम की धारा 23 की उच्चतम न्यायालय के द्वारा की गयी व्याख्या के कारण देश भर के लाखों शिक्षक प्रभावित होंगे। उन्होंने जोर दिया कि ऐसी व्याख्या से उत्पन्न व्यवधान का अनुच्छेद 21-ए के तहत संवैधानिक शिक्षा के अधिकार पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है।

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