नैनीताल , अक्टूबर 09 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में संविदा में कार्यरत ग्रुप सी और ग्रुप डी के 44 कर्मचारियों के मामले में सुनवाई करते हुए आयुष सचिव को 25 अप्रैल, 2025 के आदेश पर पुन: विचार करने को कहा है।

इन कर्मचारियों के मामले में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की पीठ में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, जनवरी 2024 में उन्हें बिना किसी कारण के सेवा से हटा दिया गया। उन्होंने न्यायालय से अपनी सेवाओं को जारी रखने और लंबित वेतन और पारिश्रमिक देने की मांग की।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत के 25 अप्रैल 2024 का हवाला देते हुए कहा कि नियमित भर्ती होने तक उन्हें सेवा में बनाये रखने के निर्देश दिये थे।

विश्वविद्यालय की ओर से भी कहा गया कि नियमित भर्ती नहीं हो पायी है। भर्ती प्रक्रिया विसंगतियों के चलते बाधित हो गई है और शासन से इसे रद्द करने का अनुरोध किया गया है। यह भी बताया कि 25 अप्रैल, 2025 को शासन ने एक आदेश जारी कर ग्रुप 'सी' और ग्रुप 'डी' के पदों पर संविदा या आउटसोर्सिंग भर्ती पर रोक लगा दी है।

जिससे विश्वविद्यालय अदालत के आदेश का अनुपालन करने में असमर्थ है। न्यायालय ने सुनवाई में यह भी कहा कि दस वर्ष तक संतोषजनक सेवा देने के बाद बिना उचित कारण हटाना अनुचित है। अंत में अदालत ने आयुष सचिव से 25 अप्रैल, 2025 के आदेश पर पुनः विचार करने को कहा है।

अदालत ने बकाया पारिश्रमिक के मामले में संबद्ध कर्मचारियों को रजिस्ट्रार के समक्ष प्रत्यावेदन देने और रजिस्ट्रार को चार सप्ताह के भीतर निस्तारण के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही अदालत ने सभी याचिकाओं का निस्तारित कर दिया।

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