पटना, दिसंबर 23 -- आकाशवाणी पटना की मशहूर उदघोषिका सुषमा शुक्ला रचित कविता संग्रह 'गुल्लक भर आखर' का लोकार्पण मंगलवार को विधानपरिषद के उपसभापति रामवचन राय ने 'विधानपरिषद सभागार' में ने किया।
इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक भगवती प्रसाद द्विवेदी, दिव्यांग जनों के लिए खास सेवा करने वाले समाजसेवी पद्मश्री विमल जैन, नाटककार, कथाकार नरेन्द्र नाथ पांडेय, शिक्षाविद अनिता राकेश और लेखक ऋषिकेश सुलभ मंच पर विराजमान थे।
कार्यक्रम की शुरुआत कवियित्री अनुराधा प्रसाद की सरस्वती वंदना से हुई। स्वागत भाषण करते हुए पूर्व विधानपार्षद किरण घई ने कहा कि सुषमा जी की कविताओं के केंद्र में स्त्री है, जो जिंदगी के अलग अलग पहलुओं की प्रतिनिधि है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि शिक्षविद रामवचन राय ने कहा कि सुषमा जी के करीब छह दशकों का अनुभव इस गुल्लक में भरा हुआ है।इस संग्रह की कवितायें जीवंत हैं। अपने स्वर से लोगों को मुग्ध करने वाली इस उदघोषिका ने अपनी विनम्र कविताओं से चकित कर दिया है।
कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि संग्रह की कवितायें संघर्ष और जिजीविषा की अदभुत उदाहरण हैं। कथाकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज मे सुषमा जी की कवितायें स्त्री का स्वर बन कर आई हैं।
कार्यक्रम का संचालन जानेमन लेखक और रंगकर्मी डॉ किशोर सिन्हा ने किया।इस अवसर पर लेखिका के पुत्र परितोष शुक्ला, पुत्रवधू सारिका शुक्ला, पुत्री तूलिका और दामाद विवेक दीक्षित मौजूद थे।
करीब चालीस वर्षों तक रेडियो उदघोषक रही श्रीमती शुक्ला ने रेडियो का वह दौर देखा है जब गांवों में रेडियो सुनने के लिए चौपाल बैठती थी। आबालवृद्ध सभी एक साथ बैठ कर रेडियो सुनते थे और उनकी प्रशंसा से भरी चिठियाँ भारतीय डाकघर के 'लेटरबॉक्स' से गुजरती हुई सुषमा जी तक पहुंचती थी। हाथ से अलग अलग लिखावट में लिखी ये चिठ्ठियां किसानों के सवाल, बुजुर्गों के आशीर्वाद, सियासती विचार और साथ नौजवानों की तरफ से भेजी गई इश्किया गाने की फरमाइशों से भरी होती थीं। जिंदगी के इसी रोमांस से उपजी हुई कविताओं से गुल्लक भर गया और 88 कविताओं की यह किताब तैयार हो गयी।
सुषमा जी कहती हैं, कानपुर से महज 19 की उम्र में पटना रेडियो में नौकरी करने आई थी और एक बार आ गयी तो पटना शहर से इश्क हो गया। जो कुछ देखा, भोगा उसे अगले पांच दशक तक बुनती रही। शब्दों की इस बुनावट ने कब कहानियों की शक्ल पकड़ी और कौन सी अनुभूति कविता बन गयी पता ही नही चला। कुछ खड़ी बोली, कुछ छंद के साथ कविता और कुछ गजलें, जब दिल ने जो कहा लिख दिया। कभी यह सोच कर नही लिखा कि कविता लिख रही हूं। बस दिल को निकाल कर कागज पर रख दिया है।
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