नयी दिल्ली , अक्टूबर 08 -- उच्चतम न्यायालय ने सात साल की बच्ची के दुष्कर्म और उसकी हत्या के आरोपी व्यक्ति की दोषसिद्धि और मृत्यु दंड की सजा बुधवार को रद्द कर दी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने आरोपी दशवंत को तत्काल रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष मामले की मुख्य परिस्थितियों को साबित करने में "बुरी तरह विफल" रहा है।
पीठ ने वर्ष 2017 में चेन्नई के मुगलिवक्कम में सात साल की बच्ची के दुष्कर्म और हत्या के आरोपी दशवंत की दोषसिद्धि और मौत की सज़ा को रद्द कर दी।
पीठ ने दशवंत की अपील स्वीकार कर ली और 2018 के मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया जिसमें निचली अदालत की दोषसिद्धि और मौत की सज़ा को बरकरार रखा गया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, "हमारा मानना है कि अभियोजन पक्ष उन महत्वपूर्ण परिस्थितियों को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है, जैसे 'आखिरी बार साथ देखे जाने' का सिद्धांत, सीसीटीवी फुटेज में कैद अपीलकर्ता की संदिग्ध गतिविधियाँ, इकबालिया बयान और एफएसएल रिपोर्ट, जो अभियोजन पक्ष के मामले की पूरी नींव बनीं।"अदालत ने कहा, "अपीलकर्ता को बरी किया जाता है। यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत हिरासत से रिहा कर दिया जाएगा।"शीर्ष अदालत ने हालांकि 2019 में शुरू में सजा के पहलू तक ही सीमित नोटिस जारी किया था, लेकिन बाद में उसने दोषसिद्धि की जांच करने के लिए दायरे का विस्तार किया। अदालत ने अंततः दोष सिद्ध करने के लिए सबूतों को अपर्याप्त पाया।
यह मामला 05 फरवरी, 2017 का है, जब सात वर्षीय बच्ची चेन्नई स्थित अपने आवासीय भवन से लापता हो गई थी। काफी तलाश करने के बाद, 8 फरवरी को उसका जला हुआ शव मिला था। पुलिस ने उसी दिन दशवंत को अपराध में शामिल होने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया।
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