(जन्मदिवस 25 दिसंबर के अवसर पर...)मुंबई, 25 दिसंबर (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत के संगीत सम्राट नौशाद पहले संगीतकार हुए जिन्हें सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के 'फिल्म फेयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म 'बैजू बावरा' के लिए नौशाद सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 'फिल्म फेयर' पुरस्कार से सम्मानित किए गए। यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि इसके बाद उन्हें कोई 'फिल्मफेयर' पुरस्कार नहीं मिला।

लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में 25 दिसंबर 1919 को जन्में नौशाद का बचपन से ही संगीत की तरफ रुझान था और अपने इस शौक को परवान चढ़ाने के लिए वे फिल्म देखने के बाद रात में देर से घर लौटा करते थे। इस पर उन्हें अक्सर अपने पिता वाहिद की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। उनके पिता हमेशा कहा करते थे कि तुम घर या संगीत में से एक को चुन लो। एक बार की बात है कि लखनऊ में एक नाटक कंपनी आई और नौशाद ने आखिरकार हिम्मत करके अपने पिता से बोल ही दिया- 'आपको आपका घर मुबारक, मुझे मेरा संगीत...।' इसके बाद वे घर छोड़कर उस नाटक मंडली में शामिल हो गए और उसके साथ जयपुर, जोधपुर, बरेली और गुजरात के बड़े शहरों का भ्रमण किया।

नौशाद के बचपन का एक वाकया बड़ा ही दिलचस्प है। लखनऊ में भोंदूमल एंड संस की वाद्य यंत्रों की एक दुकान थी जिसे संगीत के दीवाने नौशाद अक्सर हसरतभरी निगाहों से देखा करते थे। एक बार दुकान मालिक ने उनसे पूछ ही लिया कि वे दुकान के पास क्यों खड़े रहते हैं? तो नौशाद ने दिल की बात कह दी कि वे उसकी दुकान में काम करना चाहते हैं। वे जानते थे कि इसी बहाने वे वाद्य यंत्रों पर रियाज कर सकेंगे। एक दिन वाद्य यंत्रों पर रियाज करने के दौरान मालिक की निगाह नौशाद पर पड़ गई और उसने उन्हें डांट लगाई कि उन्होंने उसके वाद्य यंत्रों को गंदा कर दिया है लेकिन बाद में उसे लगा कि नौशाद ने बहुत मधुर धुन तैयार की है तो उसने उन्हें न सिर्फ वाद्य यंत्र उपहार में दे दिए बल्कि उनके लिए संगीत सीखने की व्यवस्था भी करा दी।

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