श्रीगंगानगर , अक्टूबर 26 -- राजस्थान में उत्तरी सीमा पर बसे श्रीगंगानगर शहर की स्थापना की कहानी न केवल इंजीनियरिंग का चमत्कार है, बल्कि एक दूरदर्शी शासक की विरासत का प्रतीक भी।
बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह द्वारा एक सदी पहले शुरू की गई गंगनहर परियोजना ने रेगिस्तान को हरा-भरा बनाया और रविवार को उसी की याद में मनाया जा रहा गंग महोत्सव शहरवासियों को जोड़ रहा है। तीन दिवसीय उत्सव के दूसरे दिन जहां एक ओर श्रद्धांजलि के फूल बरसाए गए, वहीं लोक कलाओं की बहार ने पूरे वातावरण को रंगीन बना दिया।
श्रीगंगानगर की नींव रखने वाले महाराजा गंगासिंह की स्मृति में गंगासिंह चौक पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा ने सभी को भावुक कर दिया। जिला कलक्टर डॉ. मंजू के नेतृत्व में प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं और स्थानीय नेताओं ने उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
गंगनहर शिवपुर हेड पर आयोजित हवन-यज्ञ और पूजा-अर्चना ने उत्सव को आध्यात्मिक आयाम दिया। पंडित कृष्णकुमार तिवाड़ी ने विधि-विधान से हवन करवाया, जबकि बालिकाओं की सर्वधर्म प्रार्थना सभा ने जिले की खुशहाली के लिए दुआएं मांगी। यहां अतिथियों ने महाराजा की स्मृति में बने म्यूजियम का दौरा किया, जहां पुरानी तस्वीरें, दस्तावेज और कलाकृतियां शहर की यात्रा को जीवंत कर रही थीं। स्वर्गीय करणी सिंह राठौड़ को भी श्रद्धांजलि दी गई, जो शहर की विकास गाथा का हिस्सा रहे हैं। पूजा के बाद गंगनहर में श्रीफल और पुष्प प्रवाहित करने का दृश्य बेहद मनोरम था, मानो नदी खुद इतिहास को साक्षी मान रही हो।
पर्यटन विभाग की पहल पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने महोत्सव को एक जीवंत मेला बना दिया। लोक कलाकारों ने "आवो नी पधारो म्हारे देश" से शुरुआत की और "मोर बन आयो रसिया", "सतरंगी राजस्थान" जैसे लोकगीतों से समां बांधा। राजस्थानी वेशभूषा में सजे कलाकारों ने मश्क वादन (रावला मंडी), कच्छी घोड़ी (निवाई टोंक), बैर नृत्य (बालोतरा-बाड़मेर), बहरूपिया स्वांग (चित्तौड़गढ़), सूफी बैंड/लंगा मांगणियार (बाड़मेर), कालबेलिया (जोधपुर), चरकुला (बीकानेर), भवाई (बाड़मेर), पंजाबी भांगड़ा (श्रीगंगानगर), घूमर और चंग-डफ की प्रस्तुतियां दीं।
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