बारां , दिसम्बर 24 -- राजस्थान में बारां जिले के शाहबाद संरक्षण आरक्षित वन में प्रस्तावित ग्रीनको एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की विद्युत परियोजना से उत्पन्न पर्यावरणीय, जैव-विविधता एवं आदिवासी अधिकारों से जुड़े गंभीर खतरों को लेकर शाहबाद जंगल बचाओ आंदोलन के तहत शाहबाद घाटी संरक्षण संघर्ष समिति ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन प्रेषित किया।

संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि ज्ञापन में अवगत कराया कि बारां जिले के शाहबाद तहसील क्षेत्र में संरक्षित वन भूमि पर प्रस्तावित करीब 1800 मेगावाट क्षमता की निजी विद्युत परियोजना के लिये 408 हेक्टेयर वन भूमि के आवंटन एवं करीब चार लाख से अधिक परिपक्व वृक्षों की कटाई की अनुमति से इस क्षेत्र की सदियों पुरानी जैव-विविधता को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।

ज्ञापन में बताया गया है कि शाहबाद आरक्षित वन देश के उन दुर्लभ वन क्षेत्रों में शामिल है, जहां करीब 450 औषधीय पादप प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनमेंसे 332 प्रजातियां औषधीय जड़ी-बूटियों की हैं। यह क्षेत्र कई दुर्लभ एवं संकटग्रस्त वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास है। यहां प्रतिवर्ष करीब 22 लाख 50 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण होता है, जो जलवायु संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

संघर्ष समिति ने आगाह किया कि यह क्षेत्र कूनो- चीता कॉरिडोर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शाहबाद का जंगल मध्यप्रदेश के माधव राष्ट्रीय उद्यान से लेकर गांधी सागर अभयारण्य तक विकसित किए जा रहे चीता के परिभ्रमण क्षेत्र में सम्मिलित है। प्रस्तावित विद्युत परियोजना से इस कॉरिडोर का विखंडन होगा, जिससे चीता परियोजना-2025 सहित देश की महत्वाकांक्षी वन्यजीव संरक्षण योजनाएं प्रभावित होंगी।

संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया कि वह विकास विरोधी नहीं है, बल्कि पर्यावरण-संवेदनशील विकास की पक्षधर हैं। समिति ने सुझाव दिया कि बिजली परियोजना को गैर-वन क्षेत्रों, खनन से बंजर हुई भूमि अथवा पहले से क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाये, जिससे ऊर्जा विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन स्थापित हो सके।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित