, Dec. 18 -- इससे पहले परमाणु ऊर्जा विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए विपक्षी दलों ने विधेयक को सदन की प्रवर समिति को या संयुक्त संसदीय समिति को भेजे जाने की मांग की ताकि इसकी और समीक्षा की जाए सके। कई विपक्षी सदस्यों ने इसके लिए संशोधन प्रस्ताव भी रखे जिन्हें विषेयक को उपबंध वार परित कराये जाते समय ध्वनिमत से खारिज कर दिया गया।
चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस पार्टी के जयराम रमेश ने विधेयक में परमाणु दुर्घटना की स्थिति में सिविल देनदारियों को लेकर 2010 के अधिनियम के प्रावधानों में ढील देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सिविल क्षतिपूर्ति के दायित्व का पिछला कानून उस समय भाजपा के नेता अरुण जेटली और तत्कालीन मंत्री पृथ्वीराज चह्वान ने मिल कर तैयार किया था। उन्होंने कहा, 'आप स्वर्गीय जेटली के योगदान पर को पलट रहे हैं?'श्री रमेश ने सवाल किया , ' क्या यह विधेयक अमेरिका को रिझाने के लिए है या निजी क्षेत्र की कंपनियां आप को मजबूर कर रही हैं।" उन्होंने जानना चाहा था कि 2047 तक परमाणु बिजली क्षमता 8800 मेगवाट से बढ़ा कर 1,00,000 मेगावट करने का जो लक्ष्य है उसमें सरकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र के योगदान का अनुपात क्या होगा। कांग्रेस नेता ने भारत में थोरियम के प्रचुर भंडार का जिक्र करते हुए थोरियम आधारित परमाणु विजली घरों को प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत पर बल दिया।
श्री रमेश ने विधेयक को विस्तृत चर्चा के लिए समिति में भेजने का प्रस्ताव करते हुए कहा कि अगर इसके लिए और समय दे दिया जाए तो इससे आसमान नहीं टूट जाएगा।
सत्तारूढ भाजपा की किरण चौधरी ने विधेयक को ऊर्जा सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि इस क्षेत्र में कांग्रेस के दौर में नीतिगत लकवा लगा हुआ था। उसे दूर करने के लिए अलग अलग बिखरे कानूनों को एक जगह सुगठित करने वाला यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने दूरसंचार और बिजली क्षेत्र को निजी निवेश से हुए लाभ का उल्लेख करते हुए कहा कि परमाणु क्षेत्र का विकास देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, 'हमें 50 साल पीछे नहीं , 50 साल आगे को देखना है।'तृणमूल कांग्रेस की सागरिका घोष ने कहा कि यह विधेयक कुछ खास लोगों को लाभ पहुंचाने का विधेयक है जिसमें लाभ के निजीकरण और जोखिम के सामाजीकरण के प्रावधान है। उन्होंने विधेयक में सिविल परमाणु दायित्व के लिए निर्धारित वित्तीय प्रावधानों को बहुत कम बताया। उन्होंने यह कहते विधेयक को और गहन समीक्षा के लिए समिति को भेजे जाने की मांग की कि यहां जीवन और स्वास्थ्य दांव पर है।
डीएमके के पी विल्सन ने इसे निजीकरण का विधेयक बताया और कहा कि इससे इस क्षेत्र में कुछ कंपनियों एकाधिकार बनेगा। उन्होंने विधेयक को प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग की।
आम आदमी पार्टी के डॉ. संदीप कुमार पाठक ने कहा कि इस क्षेत्र में विदेश के मॉडल को तो लाया जा रहा है पर वहां जैसी विनियामकीय व्यवस्था नहीं है।
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी अयोध्या रामी रेड्डी ने विधेयक के विभिन्न प्रावधानों की सराहना की पर निजी सरकारी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को प्रोत्साहित करने और परियोजना क्षेत्र में जागरूकता के लिए आवश्यक प्रावधान करने के साथ संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श की व्यवस्था पर बल दिया।
बीजेडी के मुजीबुल्ला खान ने इसे संयुक्त समिति को भेजने की मांग की।
राजद के मनोज कुमार झा ने ईस्ट इंडिया कंपनी का उल्लेख करते हुए आशंका जतायी कि इस विधेयक से देश के परमाणु क्षेत्र विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत को इस क्षेत्र में निजी कंपनियों के वर्चश्व वाला अमेरिकी मॉडल नहीं अपनाना चाहिए।
चर्चा में अन्ना द्रमुक के डॉ एम तंबी दुरै, मनोनीत डॉ सुधा मूर्ति, बीआरए के केआर सुरेश रेड्डी बसपा के रामजी , माकपा के एए रहीम, भाजपा के जिग्नेश, शिवसेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी, एनसीपी (पवार गुट) की डॉ फौजिया खान , भाजपा के डॉ जसवंत सिंह सालम सिंह परमार और घनश्याम तिवाड़ी ने भी भाग लिया।
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