देहरादून , नवम्बर 28 -- विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन और 20वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (यूकॉस्ट) के सम्मेलन में शुक्रवार को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संयुक्त रूप से महिला वैज्ञानिकों को युवा महिला वैज्ञानिक पुरस्कार प्रदान किए।

इस अवसर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य डॉ. दिनेश कुमार असवाल की पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

ग्राफिक एरा डीम्ड विश्वविद्यालय के ग्राफिक एरा सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इस सम्मेलन में श्री सिंह ने कहा कि हरिद्वार, पंतनगर और औली में अत्याधुनिक मौसम पूर्वानुमान राडार स्थापित किए जाएंगे, जो राज्य में मौसम संबंधी चेतावनी तंत्र को और अधिक मजबूत बनाएंगे। उन्होंने "सिलक्यारा विजय अभियान" का उल्लेख करते हुए कहा कि इस अभियान ने सिद्ध किया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, मजबूत नेतृत्व और वैज्ञानिक दक्षता किसी भी जटिल चुनौती को सफलतापूर्वक पार कर सकती है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री धामी ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न हिमालयी राज्यों के प्रतिनिधि तथा देश-विदेश से आए वैज्ञानिक और शोधकर्ता हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों पर विस्तृत विचार-विमर्श करेंगे। साथ ही, तकनीकी नवाचार, अनुसंधान सहयोग तथा वैश्विक साझेदारी को और मजबूत करने की दिशा में ठोस रणनीतियाँ बनाई जाएँगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस सम्मेलन से प्राप्त सुझाव और समाधान न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे विश्व के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए "4पी मंत्र पूर्वानुमान लगाएं, रोकें, तैयारी करें और सुरक्षा करें" के आधार पर 10 सूत्रीय एजेंडा लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि इसका उत्कृष्ट उदाहरण सिलक्यारा सुरंग बचाव अभियान के दौरान देखने को मिला, जहाँ 17 दिनों के अथक प्रयासों से 41 श्रमिकों को सुरक्षित बचाया गया। यह अभियान आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में दर्ज हुआ। उन्होंने कहा कि इस अभियान के बाद राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन को राहत एवं बचाव तक सीमित न रखते हुए वैज्ञानिक तकनीकों, जोखिम आकलन, कृत्रिम बुद्धि (एआई) आधारित चेतावनी प्रणाली और संस्थागत समन्वय को मजबूत करने की दिशा में ठोस पहल की है।

श्री धामी ने कहा कि राज्य में डिजिटल निगरानी प्रणाली , ग्लेशियर शोध केंद्र, जल स्रोत संरक्षण कार्यक्रम और जनभागीदारी के माध्यम से हिमालय के दीर्घकालिक संरक्षण के प्रयास जारी हैं। उन्होंने बताया कि रैपिड रिस्पॉन्स टीमें गठित करने, ड्रोन सर्विलांस, जीआईएस मैपिंग, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सेंसर आधारित झील मॉनिटरिंग पर भी कार्य किया जा रहा है। साथ ही, अर्ली वार्निंग सिस्टम को सुदृढ़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पौधारोपण, जल संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जनजागरूकता कार्यक्रमों को भी तेजी से आगे बढ़ाया गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए सौर ऊर्जा सहित हरित ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में प्रकृति को माँ के रूप में पूजने की परंपरा है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति आस्था, परंपरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को साथ लेकर आगे बढ़ना समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जैव-विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को सुरक्षित रखने के अपने 'विकल्प-रहित संकल्प' के साथ निरंतर कार्य कर रही है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मेलन आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में विश्व को नई दिशा प्रदान करेगा।

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