देहरादून , नवंबर 02 -- उत्तराखंड की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाए जाने की मांग को लेकर गठित 'स्थायी राजधानी गैरसैंण समिति' ने अपनी गतिविधि तेज़ करते हुए रविवार को राज्य सरकार के लिए स्पष्ट आगाह किया है कि अब नौ नवंबर के बाद शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं बल्कि आक्रोशपूर्ण प्रतिरोध किया जायगा।

समिति के मुख्य संयोजक, सेवानिवृत आईएएस विनोद प्रसाद रतूड़ी ने इसके साथ ही, आंदोलन को एक सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक रूप देते हुए '3 क' (क, क, क) और '4 टी' (त्रिशूल) की अनूठी रणनीति का अनावरण भी किया।

उन्होंने कहा कि यदि तीन या चार नवंबर को सरकार द्वारा बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र में स्थायी राजधानी गैरसैंण के पक्ष में कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लिया जाता है, तो प्रदेश शांतिपूर्ण आंदोलन 'आक्रोशपूर्ण प्रतिरोध' में बदल सकता है।

उन्होंने चेतावनी दी कि नौ नवंबर से कर्णप्रयाग में समिति के सदस्यों द्वारा धरना प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही, इस दिन से राज्य के सभी सरकारी कार्यक्रमों, सरकारी नेताओं और अधिकारियों का तीव्र एवं संगठित विरोध काले झंडों के साथ किया जा सकता है।

श्री रतूड़ी ने कहा कि विरोध की इस श्रृंखला में, समिति ने 26 नवंबर से प्रदेशव्यापी 'हर गाँव में लाइट बंद' करके विरोध प्रदर्शन करने की रणनीति बनाई है। उन्होंने कहा कि यह कदम राज्य के कर्णधारों, जिनमें नेता और अधिकारी शामिल हैं, को जनता के असंतोष से अवगत कराने के लिए उठाया जा रहा है। उन्होंने आज अनावरण किए गए 'ट्रिपल के' और 'ट्रिपल टी' के बारे में बताया कि यह आगामी आंदोलन की रूपरेखा का हिस्सा है। जिसमें पहले "के" से तात्पर्य भैरव (कचिया) यानी धार्मिक अनुष्ठान। इस चरण में शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाएगी। घंटे-घड़ियाल बजाए जाएंगे तथा 'कर्णधारों' (सत्ता में बैठे शासकों, नेताओं) की बुद्धि शुद्धि के लिए विशेष प्रार्थना और हवन किए जाएंगे।

स्थाई राजधानी गैरसैंण आंदोलन समिति संयोजक ने बताया कि दूसरे क का मतलब, पहाड़ों में कंडाली (बिच्छू घास) है। जिसका प्रयोग प्राचीन काल में माता-पिता बिगड़ैल बच्चों को सुधारने के लिए करते थे। साथ ही यह पहाड़ के गरीब लोगों की सब्जी भी रही है। उन्होंने कहा कि बुज़ुर्ग महिलाएँ इस प्रतीकात्मक कंडाली का प्रयोग 'करण दहोरों' पर कर, उन्हें सही राह पर लाने की कोशिश करेंगी। भविष्य में समिति द्वारा कंडाली से फैशनेबल वस्त्र बनाकर स्वरोज़गार के प्रयोग भी किए जा सकते हैं। उन्होंने तीसरे का अर्थ कंडी बताया। उन्होंने बताया कि कांडी (बाँस का टोकरा) पहाड़ की महिलाओं के कठोर परिश्रम का प्रतीक है, जिसका उपयोग वे गोबर ढोने, गैस सिलेंडर, घास और दूर-दराज से पानी लाने के लिए करती हैं। कई महिला सदस्यों की मंशा है कि वे आंदोलन के दौरान इस कांडी का प्रयोग प्रतीकात्मक विरोध के तौर पर करें।

श्री रतूड़ी ने इसी तरह फॉर (चार)टी की व्याख्या करते हुए कहा कि टी का तात्पर्य, त्रिशूल है। जिसे समिति की ओर से शिव मंदिर, भैरव मंदिर, काली मंदिरों तथा अन्य मंदिरों में वितरण किया जाएगा, जो न्याय और संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने प्रदेश की जनता से अपील की है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के इस निर्णायक संघर्ष में समिति का सहयोग करें।

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