गांधीनगर , अक्टूबर 04 -- वाइब्रेंट गुजरात रीजनल कॉन्फ्रेंस में टॉरेंट ग्रुप संस्थापक दिवंगत यू.एन. मेहता की प्रेरणादायक यात्रा का उत्सव मनाया जायेगा।
सरकारी सूत्रों ने शनिवार को बताया कि वाइब्रेंट गुजरात रीजनल कॉन्फ्रेंस के माध्यम से गुजरात सरकार यह स्पष्ट संदेश दे रही है कि विकास केवल आर्थिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक साझा दृष्टि, ठोस योजना और सतत प्रयास का परिणाम है। इस पहल के जरिये सरकार यह प्रतिपादित कर रही है कि राज्य के हर कोने में प्रगति को सशक्त बनाने के लिए नेतृत्व, नीति और सामूहिक भागीदारी का होना अनिवार्य है।
श्री मेहता जैसे दूरदर्शी औद्योगिक नेतृत्व इस दृष्टि के जीवंत उदाहरण हैं, जिन्होंने कठिन परिश्रम और स्पष्ट दिशा के साथ न केवल क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को रूपांतरित किया, बल्कि समावेशी और सतत विकास की नयी राह भी दिखायी।
गुजरात की पवित्र धरती ने अनेक विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारत की प्रगति की दिशा तय की। इन्हीं में से एक हैं, श्री उत्तमभाई नथालाल मेहता (14 जनवरी, 1924 - 31 मार्च, 1998) जो टोरेंट ग्रुप के संस्थापक और भारतीय उद्योग जगत के उज्ज्वल चमकता सितारा रहे। उन्होंने उस समय दवाओं का उत्पादन शुरू किया, जब भारत जीवनरक्षक दवाओं के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर था। केवल यही नहीं, बिजली उत्पादन और वितरण के क्षेत्र में भी उन्होंने वैश्विक मानकों वाली परियोजनायें खड़ी कीं और भारत को गहरे बिजली संकट से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभायी।
श्री मेहता का जीवन गुजरात की उस उद्यमशीलता का प्रतीक है, जिसने न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश को आत्मनिर्भरता और समृद्धि की राह दिखायी। एक सामान्य युवक से उद्योग जगत में चमकता सितारा बनने की कहानी इस प्रकार है। उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले के छोटे से गांव मेमदपुर में जन्मे श्री मेहता का जीवन इसी भावना का जीवंत उदाहरण है। अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे और मात्र दो वर्ष की आयु में माता का साया खो देने वाले इस बालक ने कभी हार नहीं मानी। संघर्षों के बीच उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई का रुख किया। वहां विल्सन कॉलेज से केमिस्ट्री में स्नातक की डिग्री प्राप्त की जो उनकी आगे की औद्योगिक यात्रा के लिए मजबूत नींव साबित हुई। परिस्थितियां कठिन थीं, लेकिन हौसले भी बुलंद थे। आर्थिक अभावों के कारण उच्च शिक्षा का उनका सपना अधूरा रह गया, फिर भी उन्होंने 1944 में सरकारी नौकरी कर अपने जीवन की नयी शुरुआत की। जल्द ही उन्होंने 1945 से 1958 तक स्विस फार्मा कंपनी 'सैंडोज़' में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के रूप में कार्य किया। यहीं से उन्होंने औषधि उद्योग की बारीकियां सीखी और एक दिन अपना कुछ करने का स्वप्न देखा।
साहस, संकल्प और दूरदर्शिता से उद्योग जगत में हुए प्रसिद्ध श्री मेहता ने 1959 में साहस और दूरदर्शिता का परिचय देते हुए मात्र 25,000 रुपये की पूंजी से अहमदाबाद में 'ट्रिनिटी लेबोरेट्रीज़' (अब टोरेंट फार्मा) की स्थापना की। यह उस दौर की बात है, जब भारत विदेशी दवाओं पर निर्भर था और देश में फार्मा उत्पादन की कल्पना भी कठिन मानी जाती थी, लेकिन गुजरात की धरती पर जन्मे इस कर्मयोगी ने यह असंभव कार्य संभव कर दिखाया। जीवन ने उन्हें बार-बार परखा। 39 वर्ष की आयु में दवा के दुष्प्रभाव से मानसिक बीमारी, 53 वर्ष में दुर्लभ प्रकार का कैंसर और 62 वर्ष में हृदय रोग के कारण बाईपास सर्जरी जैसी गंभीर परिस्थितियां सामने आयीं।
उनका पहला व्यावसायिक प्रयास भी असफल रहा और उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने अटूट आत्मविश्वास के साथ वह फिर उठ खड़े हुए। 48 वर्ष की आयु में वह पुनः सफलता के शिखर तक पहुंच गये और गुजरात को दिया एक ऐसा औद्योगिक अग्रणी जिसने देश को आत्मनिर्भर औषधि निर्माण की दिशा दिखायी।
दूरदर्शिता से शुरू हुई टोरेंट समूह की सफलता की यात्रा 1968 में जब भारत का औषधि उद्योग बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण में था, तब श्री मेहता ने अपनी असाधारण दूरदृष्टि और साहस के साथ मनोचिकित्सा संबंधी दवाओं के निर्माण और विपणन की पहल की। यह कदम उस दौर में किसी भी भारतीय उद्यमी के लिए जोखिमपूर्ण था, परंतु उन्होंने इसे देश की आवश्यकता और आत्मनिर्भरता के संकल्प के रूप में अपनाया। उनकी यही नवोन्मेषी सोच और 'मार्केटिंग' रणनीति टोरेंट समूह की सशक्त नींव बनी, जिसने आगे चलकर स्वास्थ्य, ऊर्जा और खेल जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी उत्कृष्टता का परचम लहराया।
टोरेंट समूह का बाज़ार मूल्य 31 मार्च 2025 तक 21.5 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच चुका है। टोरेंट समूह आज गुजरात की उस नवाचार-प्रधान औद्योगिक संस्कृति का प्रतीक है, जो परिश्रम, दृष्टि और सामाजिक उत्तरदायित्व को साथ लेकर चलती है।
सेवा को समर्पित जीवन, संस्कारों से संवरती विरासत श्री मेहता केवल एक सफल उद्योगपति नहीं, बल्कि संवेदनशील समाजसेवी भी थे। उन्होंने जनस्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकता बनाते हुए यू.एन. मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर (यूएनएमआईसीआरसी) की स्थापना की, जो आज भी वंचित वर्गों को सस्ती और सुलभ हृदय चिकित्सा उपलब्ध करा रहा है। उनकी पत्नी शारदाबेन मेहता ने भी बाल स्वास्थ्य और कन्या शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए समाजसेवा को नयी दिशा दी और यूएनएमआईसीआरसी की स्थापना में अहम भूमिका निभायी।
उनकी चार संतानें सुधीर, समीर, मीना और नयना आज भी अपने माता- पिता के मूल्यों को आगे बढ़ाते हुए, टोरेंट समूह को नयी ऊंचाइयों तक ले जा रही हैं और समाज हित के कार्यों में सक्रिय योगदान दे रही हैं। उनकी जन्मशताब्दी (2024) के अवसर पर मेहता परिवार ने यू.एन.एम. फाउंडेशन के माध्यम से 5,000 करोड़ रुपये स्वास्थ्य, शिक्षा, ज्ञान-विस्तार, पर्यावरण, कला-संस्कृति और सामाजिक कल्याण के लिए दान करने की भी घोषणा की थी।
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