( शिशिर रॉय चौधरी से )जगदलपुर (छत्तीसगढ़) , अक्टूबर 27 -- सशस्त्र नक्सलवाद के सफाये के केंद्र सरकार के सख्त निर्णय और उसके अनुसार प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के निरंतर अभियान की सफलता ने हाल के दिनों में कई बड़े नक्सली सरगानाओं ने हथियार डाल दिये हैं जिससे प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति में गंभीर मतभेद उभरकर सामने आये हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक माओवादी हिंसा को समाप्त करने की समय सीमा तय की है लेकिन उससे लगभग 6 महीने पहले ही इस प्रतिबंधित संगठन में वैचारिक टूटन साफ दिखाने लगी है। संगठन के कई बड़े नेताओं का आत्मसमर्पण इसके लिए बड़ा झटका है जिसने दशकों तक छत्तीसगढ़ उड़ीसा सीमा से लगे दंडकारण्य क्षेत्र में अपनी एक समानान्तर व्यवस्था बनायी हुई थी।

महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में हुए दो बड़े आत्मसमर्पणों ने माओवादियों की जड़ों को हिला दिया है। माओवादी नेता सोनू उर्फ वेणुगोपाल ने 60 साथियों के साथ 15 अक्टूबर को महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समक्ष आत्मसमर्पण किया, जबकि माओवादियों की केंद्रीय समिति के सदस्य रूपेश उर्फ सतीश ने 17 अक्टूबर को जगदलपुर में 210 नक्सलियों और 50 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया।

इन बड़ी घटनाओं के बाद सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने चार पृष्ठों का पर्चा जारी कर दोनों नेताओं को "गद्दार" बताया है। उसने कहा कि सोनू और रूपेश ने "दक्षिणपंथी प्रभाव" के कारण आरामदायक जीवन का रास्ता चुना है। अभय ने लिखा - "जो लोग जंगल छोड़कर विलासिता का जीवन चुनते हैं, वे अब क्रांतिकारी नहीं रह गए हैं। यह वर्ग संघर्ष के साथ विश्वासघात है।"उधर रूपेश ने आत्मसमर्पण से पहले और बाद में जारी तीन अलग-अलग वीडियो बयानों में आत्मसमर्पण को सही ठहराया है। उसने कहा है, "सभी रास्ते बंद हो गए थे और सशस्त्र संघर्ष को विराम देने का निर्णय दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सामूहिक फैसला था।" रूपेश ने यह भी कहा, "हमने केवल हथियारबंद संघर्ष को रोका है, जनता की लड़ाई नहीं। अब हम लोकतांत्रिक तरीकों से लोगों की आवाज़ बनेंगे।"रूपेश ने खुद पर लगाए गए विश्वासघात और मुखबिरी के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं आज़ाद हूं, किसी के दबाव में नहीं। साथी यहां आकर मुझसे मिलें और खुद देखें कि मैंने संगठन के साथ कोई विश्वासघात नहीं किया है।"सुरक्षा एजेंसियों और विश्लेषकों का मानना है कि शीर्ष नक्सली नेताओं का आत्मसमर्पण सरकार और सुरक्षा बलों की रणनीतिक सफलता को दर्शाता है। अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर दक्षिण बस्तर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने 'यूनीवार्ता' से कहा, "रूपेश और सोनू जैसे बड़े नक्सलियों का हथियार डालना इस बात का संकेत है कि माओवादी संगठन वैचारिक और मानव संसाधन दोनों तरह से कमजोर हो चुका है। अब उनके पास न तो मनोबल बचा है, न ही संगठनात्मक शक्ति।" अधिकारी ने यह भी कहा कि सरकार की बेहतर पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों के बेहतर खुफिया नेटवर्क ने, विशेषकर बस्तर और गढ़चिरौली जैसे कोर इलाकों में माओवादियों की आत्मसमर्पण की गति को तेज किया है ।

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