जालंधर, सितंबर 30 -- सेना की वज्र कोर की गोल्डन ऐरो डिवीजन ने मंगलवार को पंजाब के असल उत्तार में 1965 भारत-पाक युद्ध की हीरक जयंती पूरे सम्मान और गरिमा के साथ मनाई।
यह ऐतिहासिक रणक्षेत्र, जिसे 'पैटन टैंकों का कब्रिस्तान' कहा जाता है, एक बार फिर राष्ट्रीय स्मरण और गर्व का केंद्र बना। समारोह में पंजाब के राज्यपाल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुये। वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, युद्ध के दिग्गज, वीर नारियां, प्रशासनिक गणमान्य जन, विद्यार्थी और बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक इस अवसर के साक्षी बने।
इस आयोजन में उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गयी, जिनके अटूट साहस और सर्वोच्च बलिदान ने असल उत्तार और बरकी की लड़ाई में 1965 युद्ध का रुख बदल दिया था और भारत को विजय दिलाई थी। विशेष रूप से कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद, परमवीर चक्र (मरणोपरांत) को नमन किया गया, जिनकी अतुलनीय वीरता और साहस आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करता है।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने भारतीय सेना के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सेना ने न केवल राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा की है, बल्कि भारत की गौरवशाली विरासत को भी सुरक्षित रखा है। उन्होंने आर्काइव्स-कम-म्यूज़ियम और हमीद गैलरी के उद्घाटन को 1965 के शौर्य को अमर करने वाला कदम बताया और कहा कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए शिक्षा और प्रेरणा का स्रोत बनेगा। साथ ही उन्होंने सीमा पर्यटन को बढ़ावा देने और वीरों की धरती से नागरिकों को जोड़ने में सेना और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (इनटैक) की इस पहल की सराहना की। राज्यपाल ने यह भी रेखांकित किया कि पूरा राष्ट्र भारतीय सेना पर आने वाली हर चुनौती, चाहे पारंपरिक हो या नयी, से निपटने के लिए भरोसा करता है। उन्होंने कहा कि अमृत काल की ओर बढ़ते भारत में सेना राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ बनी रहेगी, एकता को मज़बूत करेगी और युवाओं को साहस, अनुशासन और ईमानदारी के साथ राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी।
समारोह के पश्चात् राज्यपाल कटारिया द्वारा आर्काइव्स-कम-म्यूज़ियम का उद्घाटन किया गया जो 1965 युद्ध के इतिहास, वस्तुएँ और वीरता की कहानियाँ को संजोकर रखेगा। हमीद गैलरी भी राष्ट्र को समर्पित की गयी, जो सीक्यूएमएच अब्दुल हमीद, पीवीसी की शौर्य गाथा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचायेगी। इसके अतिरिक्त युद्ध वीरों और वीर नारियों को उनके त्याग और योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
असल उत्तार में हुई इस हीरक जयंती ने भारतीय सेना और भारत की जनता के अटूट संबंध को और मज़बूत किया। वीरता और शौर्य की इस भूमि पर आयोजित यह समारोह बलिदान की स्मृति, सैन्य परंपराओं के उत्सव और भविष्य के संकल्प का प्रतीक बना।
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