विनय कुमार सेपटना , नवंबर 12 -- बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान की समाप्ति के बाद आये संभावित परिणामों के सर्वे ने अटकलों के बाजार को गर्म कर दिया है, लेकिन पिछला इतिहास कहता है कि लोकतंत्र की जननी के मतदाताओं का मिजाज भांपने में अक्सर चूक जाते हैं, 'एग्जिट पोल'।

बिहार चुनाव में 'एक्जिट पोल' के नतीजों के बाद जहां बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इसे उम्मीद के अनुसार बताया, वहीं महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने विगत वर्षों में हुए बंगाल और झारखंड के चुनाव के समय 'एग्जिट पोल' के झूठे होने का उदाहरण दिया और कहा कि आज का मीडिया सत्ता की गोद मे बैठा हुआ है और गृहमंत्री के निर्देश पर आंकड़े जारी करता है। बिहार के पूर्व मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता सुरेश पासवान ने कहा कि बिहार के बाहर भी हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में 'एग्जिट पोल' गलत साबित हुए थे। उन्होंने कहा कि इसके पहले हुए 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा के चुनाव में भी सर्वे विश्वसनीय के पैमाने पर खरे नही उतरे थे।

लोकतंत्र की जननी बिहार के मतदाताओ के मिजाज को समझना इतना आसान नही होता है और पूरे देश में सबसे ज्यादा गलत साबित होने वाले 'ओपिनियन पोल' इसी प्रदेश के नतीजों को ले कर रहे हैं। सन् 2000 से सन् 2020 के बीच बिहार में हुए 56% चुनावी सर्वे के नतीजे पूरी तरह ग़लत साबित हुए। यानी सर्वे के नतीजे और चुनाव के वास्तविक नतीजे में कोई मेल नहीं था, लेकिन 44% सर्वेक्षणों के नतीजे चुनाव के वास्तविक नतीजे के आसपास रहे, यानी व्यापक तौर पर सही साबित हुए। नीतीश कुमार भले ही 20 वर्षों से सत्ता का स्वाद चख रहे हैं, लेकिन 2010 में आये विधानसभा नतीजों को छोड़ दें तो बिहार में पक्ष और विपक्ष के बीच लगातार जद्दोजहद जारी है।

चुनाव के दौरान बढ़े हुए मतदान प्रतिशत के लिए विभिन्न पक्षों के अपने अपने दावे देखने को मिलते हैं और सभी दल बढ़े हुए मतदन में अपना फायदा बताते रहे हैं। लेकिन बिहार और अन्य राज्यों में चुनावों के नतीजे बताते हैं कि मतदान और चुनावी नतीजों के बीच शायद ही कोई संबंध होता है। ऐसे कई चुनाव हुए हैं, जब मतदान-प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में कम हुआ, लेकिन सरकारें बदलीं भी और दोबारा भी चुनी गईं, ऐसे में परिणाम में मतों के घटने का कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हुआ। 2020 तक विभिन्न राज्यों में हुए लगभग 332 विधानसभा चुनावों के विश्लेषण से पता चलता है कि 188 चुनावों में मतदान-प्रतिशत बढ़ा था। इनमें 89 सरकारें दोबारा चुनी गईं। इसी तरह, 144 बार मतदान-प्रतिशत घटा है और इनमें 56 सरकारें दोबारा चुनी गईं। स्पष्ट रूप से, मतदान-प्रतिशत और चुनावी नतीजों के बीच कोई मजबूत संबंध नहीं है।

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