भोपाल , अक्टूबर 12 -- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आज तात्या टोपे स्टेडियम, भोपाल में श्रेणी मिलन पथ संचलन का भव्य दृश्य देखने को मिला। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भोपाल विभाग द्वारा संयोजित किया गया। स्वयंसेवकों की अनुशासित पंक्तियां, घोष का वादन और राष्ट्रभाव से ओतप्रोत युवाओं ने सम्पूर्ण वातावरण को प्रेरणादायी बना दिया।
कार्यक्रम में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश माननीय रोहित आर्य मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। सह-क्षेत्र प्रचारक श्री प्रेमशंकर ने मुख्य वक्ता के रूप में संघ के कार्य, उद्देश्य और समाज में उसकी प्रासंगिकता पर विस्तृत उद्बोधन दिया। मंच पर प्रांत संघचालक माननीय अशोक पांडे, विभाग संघचालक माननीय सोमकांत उमालकर उपस्थित रहे।
इस अवसर पर चिकित्सा, शिक्षा, विधि, प्रशासन, उद्योग, कृषि, कला, खेलकूद तथा मातृशक्ति सहित समाज के विविध वर्गों से जुड़े तीन हजार से अधिक स्वयंसेवकों की सहभागिता रही। तात्या टोपे स्टेडियम स्वयंसेवकों के अनुशासित संचलन, दंड, योगासन और घोष की स्वर लहरियों से गूंज उठा। सुसज्जित गणवेश में सुसंगठित स्वयंसेवकों की श्रेणियां जब एक स्वर में कदमताल करती हुई आगे बढ़ीं, तो यह दृश्य राष्ट्र की एकता, अनुशासन और स्वाभिमान का जीवंत प्रतीक बन गया।
मुख्य अतिथि रोहित आर्य ने समाज में संघ की यात्रा, उसके कार्यों और नागरिक शिष्टाचार एवं सामाजिक समन्वय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संघ ने अपने कार्यों के माध्यम से समाज में अनुशासन, आत्मीयता और राष्ट्रीय एकता की भावना को सशक्त किया है।
मुख्य वक्ता प्रेमशंकर जी ने अपने उद्बोधन में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी द्वारा संघ की स्थापना के मूल उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संघ का जन्म केवल संगठन खड़ा करने के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र को संगठित, समर्थ और संस्कारित बनाने के संकल्प से हुआ। उन्होंने बताया कि डॉ. हेडगेवार जी ने अनुभव किया कि देश की अनेक समस्याओं की जड़ समाज की विखंडित चेतना में है, इसलिए उन्होंने संगठन के माध्यम से व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण का कार्य आरंभ किया। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र तक के निर्माण का सतत प्रवाह है।
अपने वक्तव्य में प्रेमशंकर जी ने द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर 'गुरुजी' की जीवन दृष्टि और उनके नेतृत्व में संघ के विस्तार पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि गुरुजी ने संघ को मात्र संगठन नहीं, बल्कि एक जीवंत राष्ट्रशक्ति के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व में संघ का कार्य शिक्षा, संस्कृति, ग्रामविकास और सेवा जैसे विविध क्षेत्रों में फैल गया, जिससे समाज के प्रत्येक वर्ग तक संगठन की भावना पहुँची।
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