लखनऊ , अक्तूबर 31 -- त्रिपुरा के मुख्यमंत्री व किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग के पूर्व छात्र डा. माणिक साहा ने कहा कि "राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह स्पष्ट कहती है कि मातृभाषा या भारतीय भाषाओं में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा देना केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक मौलिक सुधार है। यह उस भारतीय चेतना को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम है, जिसे वर्षों की औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली ने दबा दिया था।"शुक्रवार को केजीएमयू के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग तथा एसोसिएशन ऑफ ट्रॉमा एंड ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन्स (एटम्स) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "पुनर्भवम् 2025" एवं "एटम्स मैक्सिलो फेशियल ट्रॉमा कॉन्फ्रेंस" का समापन हुआ।

डा. साहा ने कहा कि आज का मेरा विषय इस सम्मेलन के हृदय से जुड़ा है "मातृ भाषा में चिकित्सा शिक्षा का महत्व", जो सीधे-सीधे राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भावना से ओत-प्रोत है। 'पुनर्भवम्' (फिर से पूर्व जैसा हो जाना, अपने वास्तविक रूप को प्राप्त करना) नाम अपने आप में एक गहरा दार्शनिक अर्थ रखता है- पुनर्जन्म, पुनर्निर्माण, और नवीनीकरण। यह केवल एक अकादमिक आंदोलन नहीं है, बल्कि एक वैचारिक जागरण है जिसने बहुत पहले यह दृष्टि रखी कि वैज्ञानिक शोध और चिकित्सा शिक्षा मातृभाषा में भी हो सकती है, और होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि "मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संवेदना और करुणा का पुल है। जब डॉक्टर मरीज की मातृभाषा में बात करता है, तो इलाज केवल उपचार नहीं रह जाता वह सहानुभूति में बदल जाता है"। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप भारतीय भाषाओं में चिकित्सा शिक्षा के प्रसार को "वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण" बताया।

डॉ माणिक साहा ने कहा कि एआई, डेटा विज्ञान और डिजिटल हेल्थकेयर का युग निश्चित रूप से चिकित्सा को नए आयाम दे रहा है। लेकिन यह भी सच है कि तकनीक बुद्धि दे सकती है, पर संवेदना नहीं। वह कार्य भाषा करती है जो मन और मनुष्य के बीच पुल बनाती है।

उन्होंने कहा कि विद्यार्थी केवल रटने वाले नहीं रहते- वे सोचने वाले, प्रश्न करने वाले और नवाचार करने वाले बनते हैं। यही वह परिवर्तन है जो एनईपी चाहती है- "जहाँ शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री नहीं, बल्कि मौलिकता और चरित्र निर्माण हो।" भारत का चिकित्सा परिदृश्य विशाल है, विविध है। हमारे रोग, हमारे समाज, और हमारी आवश्यकताएँ अलग हैं। इसलिए हमारे समाधान भी भारतीय सोच से आने चाहिए-और वह सोच तभी संभव है जब शिक्षा हमारी अपनी भाषा में होगी। इस दौरान उन्हें एटम्स की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया गया।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. (डॉ.) सोनिया नित्यानंद ने ओएमएफ़एस विभाग के कार्यों की सराहना करते हुए ट्रॉमा सेंटर-2 में एक समर्पित फ्लोर, ऑपरेशन थिएटर और वार्ड उपलब्ध कराने की घोषणा की।

विभागाध्यक्ष प्रो. उमा शंकर पाल ने बताया कि सम्मेलन का उद्देश्य मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा के क्षेत्र में शोध, नवाचार और प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना था। डॉ. मदन मिश्रा, अध्यक्ष एटम्स, ने कहा कि यह आयोजन "विज्ञान, संस्कार और संस्कृति" का अनूठा संगम सिद्ध हुआ।

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