तिरुवनंतपुरम , अक्टूबर 23 -- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को वर्कला के पवित्र शिवगिरी मठ में श्री नारायण गुरु के महासमाधि की शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। उन्होंने इस पूजनीय संत और समाज सुधारक को एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में वर्णित किया, जिनके आदर्श पीढ़ियों को प्रेरित करते रहते हैं।
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, मंत्रियों वी. शिवकुट्टी और वी.एन. वासवन, तथा श्री नारायण धर्म संघम ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमद् सुभमगनंद स्वामीकल की उपस्थिति में आयोजित इस समारोह में राष्ट्रपति ने नारायण गुरु के आध्यात्मिक ज्ञान और सामाजिक परिवर्तन के प्रति उनके आजीवन समर्पण को श्रद्धांजलि अर्पित की।
राष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु को भारत के महानतम आध्यात्मिक नेताओं और सुधारकों में से एक बताया, जिन्होंने समानता, एकता और करुणा के अपने संदेश के माध्यम से राष्ट्र के नैतिक और सामाजिक चेतना को नया रूप दिया।
उन्होंने कहा कि गुरु का दर्शन जाति, पंथ और धर्म की सीमाओं को पार करता था, जो मानवता को सिखाता था कि सच्ची मुक्ति ज्ञान, आत्म-शुद्धिकरण और सभी प्राणियों के प्रति प्रेम में निहित है। उनके अमर संदेश, "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर मानवजाति के लिए," का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ये शब्द आज के विश्व में भी कालातीत प्रासंगिकता रखते हैं, जो समाज को परेशान करने वाली विभाजन और संघर्ष की समस्याओं का एक गहरा समाधान प्रस्तुत करते हैं।
उन्होंने कहा कि गुरु का एकता और परस्पर सम्मान का आह्वान असहिष्णुता और मतभेदों के इस युग में शांति और सह-अस्तित्व के लिए एक सार्वभौमिक समाधान है। राष्ट्रपति मुर्मू ने उल्लेख किया कि श्री नारायण गुरु ने न केवल समानता का उपदेश दिया, बल्कि इसे अपने कार्यों के माध्यम से लागू भी किया।
उन्होंने मंदिर, स्कूल और सामाजिक संस्थान स्थापित किए, जो हाशिए पर पड़े लोगों के लिए शिक्षा और नैतिक उत्थान के केंद्र बने। राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी पहल ने समाज के उत्पीड़ित वर्गों में साक्षरता, आत्मनिर्भरता और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया।
गुरु के छंद, "जातिभेदम मठद्वेषम एडुमिल्लदे सर्वरम," का हवाला देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है, जहां सभी लोग भाईचारे के साथ, जाति और धार्मिक घृणा की बाधाओं से मुक्त होकर रहें।
उन्होंने कहा कि मलयालम, संस्कृत और तमिल में उनकी रचनाएं गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि को सादगी और शालीनता के साथ प्रकट करती हैं। राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि तेजी से बदलते और संघर्षों के वर्तमान युग में श्री नारायण गुरु की शिक्षाएं मानवता के लिए स्थायी ज्ञान प्रदान करती हैं।
उन्होंने कहा, "उनका सार्वभौमिक भाईचारे का दृष्टिकोण हमें याद दिलाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वरीयता निवास करती है।" राष्ट्रपति ने लोगों से आग्रह किया कि वे गुरु के आदर्शों को अपनाएं-हर इंसान के साथ सम्मान से व्यवहार करें, निस्वार्थ सेवा करें और सभी में ईश्वरीयता को देखें।
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