रायपुर, अक्टूबर 02 -- रायपुर की सुबह आज के दिन कुछ अलग होती है। विजयादशमी की बेला आते ही कंकाली मठ की ओर श्रद्धालुओं का रेला बढ़ने लगता है। आम दिनों में यह जगह बिल्कुल शांत रहती है लेकिन साल में एक बार केवल दशहरे के दिन यहां आस्था का मेला सजता है।

कहा जाता है कि इस दिन मां कंकाली अपने पूर्ण तेजस्वी स्वरूप में प्रकट होती हैं। मंदिर के पुजारी दूध और दही से माता का अभिषेक करते हैं, विशेष पूजा होती है और सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार शस्त्रों की आराधना की जाती है। मान्यता है कि माता की कृपा से संतानहीन दंपत्तियों की गोद भर जाती है।

इस मठ का इतिहास भी कम रहस्यमय नहीं है। बुजुर्ग बताते हैं कि 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यहां नागा साधुओं का डेरा रहता था। यही साधु विशेष तांत्रिक साधना के लिए कंकाली माता की आराधना करते थे। बाद में 17वीं शताब्दी में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। आज भी यहां नागा साधुओं के हजारों साल पुराने अस्त्र-शस्त्र - तलवार, भाला, फरसा, ढाल और तीर-कमान सुरक्षित हैं।

मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित कथा भी है। कहा जाता है कि कभी माता संन्यासियों से रुष्ट होकर मठ से चली गई थीं। संन्यासियों ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की। अंततः माता ने वचन दिया कि वे प्रतिदिन नहीं बल्कि केवल विजयादशमी के दिन पूर्ण तेज के साथ यहां विराजेंगी। तभी से यह परंपरा चल रही है कि साल में केवल एक दिन मंदिर के पट खोले जाते हैं।

श्रद्धालु मानते हैं कि इस दिन कंकाली माता के दर्शन मात्र से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और हर मनोकामना पूर्ण होती है। शायद यही कारण है कि हर साल दशहरे के दिन रायपुर का यह प्राचीन मठ लाखों आस्थावानों के लिए आस्था और रहस्य का केंद्र बन जाता है।

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