मुंबई , नवंबर 12 -- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में अमरावती जिले के मेलघाट आदिवासी क्षेत्र में कुपोषण से संबंधित शिशु मृत्यु की बढ़ती घटनाओं के प्रति बेहद लापरवाह रवैये के लिए राज्य सरकार को बुधवार को कड़ी फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की पीठ ने अमरावती जिले के आदिवासी क्षेत्र में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की बार-बार होने वाली मौतों से संबंधित कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जून और नवंबर 2025 के बीच दर्ज 65 शिशु मृत्यु पर गहरी चिंता व्यक्त की।
पीठ ने कहा कि 2006 से निरंतर न्यायिक निगरानी और बार-बार जारी आदेशों के बावजूद जमीनी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, जबकि सुधार के सरकारी दावे केवल कागजों पर ही हैं।
अदालत ने टिप्पणी की कि अधिकारियों को प्रक्रियात्मक प्रतिक्रिया देने के बजाय इस संकट के समाधान के लिए सच्ची प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।
न्यायालय ने चार प्रमुख विभागों - लोक स्वास्थ्य, जनजातीय मामले, महिला एवं बाल विकास, और वित्त - के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर सरकार की कार्रवाई की व्याख्या करने के लिए तलब किया है। इन अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने विभागों द्वारा कुपोषण से निपटने और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करने के लिए अपनाए गए ठोस उपायों की रूपरेखा वाले विस्तृत हलफ़नामे प्रस्तुत करें।
पीठ ने अपनी टिप्पणियों में यह भी सुझाव दिया कि सरकार दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में तैनात डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन शुरू करने पर विचार करे ताकि उन्हें वहाँ बनाए रखने और स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
अदालत ने कहा कि हाशिए पर स्थित क्षेत्रों में बच्चों के जीवन की रक्षा करने का राज्य का संवैधानिक कर्तव्य केवल कागजी कार्रवाई या समय-समय पर समीक्षा करके पूरा नहीं किया जा सकता।
मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी।
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