मुंबई , दिसंबर 02 -- मुंबई और नवी मुंबई के पर्यावरणविदों और पक्षी प्रेमियों ने लंबे इंतज़ार के बाद नज़र आये राजहंसों का स्वागत किया है। इन पक्षियों का नज़र आना शहर की खाड़ियों और आर्द्रभूमि के मैदानों के स्वस्थ रहने के अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।

फिलहाल इन पक्षियों की संख्या कम है लेकिन इन गुलाबी मेहमानों के आगमन ने पर्यावरणविदों को यह उम्मीद दी है कि देर से ही सही, प्रवासी मौसम आ चुका है।

शोधकर्ता मृगांक प्रभु ने बताया कि ठाणे की खाड़ी में करीब 300 राजहंस देखे गये हैं, जबकि नवी मुंबई में पक्षियों के आवागमन पर नज़र रखने वालों ने बताया कि नेरुल में डीपीएस फ्लेमिंगो झील पर राजहंसों को देखा गया है।

वन अधिकारियों को उम्मीद है कि पक्षियों का आवागमन इसी तरह जारी रहेगा। ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभ्यारण्य के रेंज वन अधिकारी प्रशांत बहादुरे ने कहा, "यह अभी सिर्फ शुरुआत है। आमतौर पर राजहंसों के शुरुआती आगमन के बाद बाद में बड़ी तादाद में ये पक्षी आने लगते हैं।"दूसरी ओर, पर्यावरण समूहों के लिये इन पक्षियों की सालाना वापसी खुशी और चिंता दोनों का मौका है। नवी मुंबई को 'फ्लेमिंगो सिटी' का तमगा दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाली नैटकनेक्ट फाउंडेशन के निदेशक बी एन कुमार ने कहा, "हम मौसम के शुरुआती राजहंसों को देखकर बेहद खुश हैं। यह हमेशा एक स्वागत योग्य दृश्य होता है। लेकिन उनका आना हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारी आर्द्र भूमि (झीलें) कितनी नाज़ुक हो गयी है।"उन्होंने कहा, "राजहंस सिर्फ हमारी खाड़ियों की खूबसूरती को ही नहीं बढ़ाते हैं बल्कि वे पोषक तत्वों को विनियमित करके और जैव विविधता का समर्थन करके हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को ज़िन्दा भी रखते हैं। वे इस बात के सूचक हैं कि यह प्राकृतिक वास सुरक्षित है।"श्री कुमार ने कहा कि डीपीएस फ्लेमिंगो झील को संरक्षण क्षेत्र बनाना चाहता है। राज्य के वन्यजीव बोर्ड ने अप्रैल में इस मांग को मंज़ूरी भी दे दी है लेकिन राजपत्र अधिसूचना अब तक जारी नहीं की गयी है।

उन्होंने कहा कि उरान के तटीय गांव में पणजे, भेंडखाल, बेलपाड़ा और नवी मुंबई में एनआरआई, टीएस चाणक्य और लोटस झील को भी महत्वपूर्ण प्रवासी केंद्रों के तौर पर संरक्षित करना चाहिये।

पर्यावरणविदों का कहना है कि पक्षियों का दिखना हमें यह याद दिलाता है कि उनके संरक्षण उपायों का तेज़ करना चाहिये। नवी मुंबई पर्यावरण संरक्षण सोसाइटी के सदस्य संदीप सरीन ने कहा, "हमें अपने गुलाबी मेहमानों को यहां लाने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित कर उनका खुली बांहों से स्वागत करना चाहिये।"राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची एवं मूल्यांकन के अनुसार, महाराष्ट्र में 24,000 से ज़्यादा झीलें हैं। पूरे देश में इसरो के समर्थन वाली झील एटलस में 2.25 हेक्टेयर से बड़ी दो लाख से ज़्यादा आर्द्रभूमियां शामिल की गयी हैं। इसके बावजूद पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि लंबी सत्यापन प्रक्रिया की वजह से आधिकारिक सूचना में देरी हुई है।

इन गुलाबी परिंदों का आगमन विशेषज्ञों के उम्मीद है कि ये मौसमी मेहमान न सिर्फ़ एक जीवंत प्रवासी दौर की शुरुआत करेंगे, बल्कि उन झीलों को बचाने के एक नये इरादे को भी जन्म देंगे, जो इनका ठिकाना हैं।

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