लखनऊ , अक्टूबर 10 -- डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. सी.एम. सिंह ने कहा कि भारत में लगभग 60-65 प्रतिशत मानसिक रोगियों को उचित इलाज नहीं मिल पाता, जो एक गंभीर 'ट्रीटमेंट गैप' है। उन्होंने बताया कि कई बार मरीज पेट दर्द या सिरदर्द जैसी शारीरिक शिकायतों के लिए महीनों तक इलाज कराते रहते हैं, जबकि असली कारण तनाव या अवसाद होता है।
शुक्रवार को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में "सेवाओं तक पहुँच - आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य" विषय पर एक राष्ट्रीय सीएमई (निरंतर चिकित्सा शिक्षा) का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में निदेशक ने कहा कि "मानसिक संतुलन के लिए हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। योग, ध्यान, समय पर सोना और संतुलित आहार ही मानसिक स्वास्थ्य की असली दवा है।"प्रो. विक्रम सिंह ने "माइंड-बॉडी एक्सिस" की व्याख्या करते हुए बताया कि तनाव के दौरान शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ने से हाइपरटेंशन, मधुमेह और पाचन संबंधी विकार उत्पन्न होते हैं। उन्होंने एक मरीज का उदाहरण देते हुए कहा "जब उसे दवाओं के साथ ध्यान और काउंसलिंग की सलाह दी गई, तो केवल एक महीने में उसका ब्लड प्रेशर सामान्य हो गया।"डॉ. जिलानी एक्यू ने विभिन्न आयु वर्गों में मानसिक बीमारियों की बढ़ती दर पर चिंता जताते हुए कहा कि बच्चों में स्क्रीन की लत, युवाओं में बेरोजगारी का दबाव और बुजुर्गों में एकाकीपन मानसिक स्वास्थ्य के बड़े कारण बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि अल्जाइमर और डिमेंशिया के 60-70 फीसद मरीज अवसाद या चिंता के भी शिकार होते हैं।
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