पटना , अक्टूबर 19 -- दीपों के पर्व दीपावली के अवसर पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये रंगोली बनाने की परंपरा रही है।

दीपावली के अवसर पर घरों को अलग-अलग तरह से सजाया जाता है। कुछ लोग पूरे घर को दीयों से रौशन करते हैं तो कुछ इलेक्ट्रिक लाइटों से लेकिन जब तक घर को रंगोली से नहीं सजाया जाए कुछ अधूरा सा लगता है।माना जाता है कि बिना रंगों के हर खुशी अधूरी है, इसी वजह से देश में लगभग हर बड़े त्योहार पर रंगोली बनाने की परंपरा है। दीवाली पर लोग रंगोली को जरूर बनाते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी रंगोली से खुश होती हैं। कहा जाता है कि मां लक्ष्मी अपने कुमकुम लगे पैरों से वहीं प्रवेश करती हैं, जहां साफ-सफाई और रचनात्मकता होती है और रंगोली उसी रचनात्मकता का प्रमाण है।

कहा यह भी जाता है कि दीवाली के दिन रावण का वध करने के बाद जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनका पूरे हर्षोल्लास से स्वागत किया था। लोगों ने अपने घरों की साफ-सफाई करके उन्हें स्वच्छ बनाकर रंगों तथा फूलों की मदद से रंगोली सजाई थी और घर को दीपक से सजाया था, इसलिए तब से ही दीपावली पर रंगोली और दीए जलाने का नियम बन गया है।

रंगोली को आलपोना, कोलम या आरीपोमा भी कहते हैं। रंगोली के डिजाइन एक पीढ़ी दूसरे पीढ़ी को सिखाती है। रंगोली के डिजायन और रंग प्रान्त, परंपरा और लोगों की संस्कृति के अनुसार बदल जाते हैं। रंगोली दो शब्दों रंग और अवली से बना है। इसका अर्थ है रंगों की रेखा। रंगोली रंगे चावल के पाउडर और फूलों की पंखुड़ियों से बनाये जाते हैं।दीवाली की रंगोली बनाने के लिए रंगीन चावल का पाउडर, फूलों की पंखुड़ी, हल्दी पाउडर और सिंदूर का प्रयोग होता है। रंगोली के डिजाइन में हिंदू देवी-देवताओं की आकृति, ज्यामितीय आकृतियां, रेखाएं, डॉट डिजायन, गोल फ्लोरल डिजायन और पिकॉक शामिल किये जाते हैं।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित