नयी दिल्ली , नवंबर 04 -- भारत में इस समय 65 स्वच्छ औद्योगिक परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं जो खरीद समझौतों के अभाव में वित्त पोषण के लिए संघर्ष कर रही है।
स्वच्छ उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय संगठन इंडस्ट्रियल ट्रांजिशन एक्सलरेटर (आईटीए), बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में जारी रिपोर्ट में यह बात कही गयी है।
'अनलॉकिंग इंडियाज क्लीन इंडस्ट्रियलाइजेशन ऑपर्च्युनिटी' शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 65 स्वच्छ परियोजनाओं को साकार करने के लिए 150 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। इन परियोजनाओं से दो लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है।
इनमें से 51 परियोजनाएं रसायन उद्योग में, पांच एल्युमीनियम उद्योग में, चार इस्पात उद्योग में, तीन विमानन उद्योग में और दो सीमेंट उद्योग में हैं। कुल 65 में से मात्र चार परियोजनाओं में परिचालन शुरू हो सका है, दो अंतिम निवेश निर्णय के चरण में है। अन्य 59 की घोषणा हो चुकी है लेकिन अभी काम ज्यादा आगे नहीं बढ़ सका है।
इसके अलावा कार्यक्रम में आईटीए भारत परियोजना समर्थन कार्यक्रम की भी शुरुआत की गयी जिसके तहत आईटीए रिपोर्ट में पहचान की गयी परियोजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए बैंक, उद्योग और सरकार के साथ समन्वय करेगा। घरेलू और वैश्विक दोनों स्तरों पर फंड जुटाने के लिए उचित परिस्थितियां बनाने की कोशिश की जायेगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और एवरसोर्स कैपिटल के अध्यक्ष जयंत सिन्हा ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि विकसित भारत और हरित भारत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और विकसित भारत के लिए हरित भारत अनिवार्य है। हमें नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना ही होगा इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
श्री सिन्हा ने कहा कि यह सच्चाई है कि हरित विकास को उद्योग जगत के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, इसके लिए नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस साल सबने देखा कि मानसून असामान्य रहा और शायद पहली बार दिवाली के बाद भी लोगों को एसी चलाकर सोना पड़ रहा है। यदि इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का तापमान गर्मी के दिनों में 50 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचने लगेगा।
आईटीए के प्रबंध निदेशक जेम्स स्कफील्ड ने कार्यक्रम के बाद 'यूनीवार्ता' से बात करते हुए कहा कि इन परियोजनाओं के लिए बैंकों से ऋण नहीं मिल पाने का सबसे बड़ा कारण मांग में कमी है। बैंकों को लंबे समय के लिए राजस्व की सिक्योरिटी ज्यादा भाती है, आम तौर पर वे चाहते हैं कि 10-15 साल का खरीद समझौता हो। यह एक बड़ी चुनौती है कि हम किस तरह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों से मांग का सृजन कर सकते हैं। हरित सार्वजनिक खरीद जैसी कुछ सरकारी पहलें हो सकती हैं। इसके अलावा खरीदारों के अलायंस, बाजार तंत्र या वित्त पोषण तंत्र हो सकते हैं जो मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाने में मददगार हो सकते हैं। लागत में कमी करते इन परियोजनाओं के वाणिज्यीकरण और ऋण मिलने की संभावना बढ़ायी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि दूसरी चुनौती उचित अवसंरचना की तैयारी है, जैसे बंदरगाह, पारेषण ग्रिड आदि। इस सभी कारकों को एक साथ लाकर हम परियोजनाओं को धरातल पर उतार सकते हैं। आईटीए की भूमिका एक समन्वयक की है ताकि वित्त पोषण जल्द उपलब्ध कराया जा सके।
श्री स्कोफील्ड ने कहा कि भारत में नीति निर्माण के स्तर पर सरकार ठीक काम कर रही है। हम नयी नीतिगत परिस्थितियों के निर्माण की बात कर रहे हैं। दुनिया में कोई भी देश अबतक ऐसी नीति नहीं बना पाया है जो अपने-आप में पूर्ण हो।
उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में जिन 65 परियोजनाओं का जिक्र किया गया है उनमें से 10-12 परियोजनाओं के मामले में डेवलपर्स ने बताया है कि वे साल 2026 में अंतिम वित्तीय निर्णय का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
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