, Nov. 26 -- वर्ष 1930-1940 के दौरान संगीत निर्देशक शास्त्रीय संगीत की राग-रागिनी पर आधारित संगीत दिया करते थे। हुस्नलाल-भगतराम इसके पक्ष में नहीं थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत में पंजाबी धुनों का मिश्रण करके एक अलग तरह का संगीत देने का प्रयास दिया और उनका यह प्रयास काफी सफल भी रहा। उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म चांद से की। इस फिल्म में उनके संगीतबद्ध गीत दो दिलों की ये दुनिया श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुये लेकिन फिल्म की असफलता के कारण संगीतकार के रूप में वे अपनी खास पहचान नहीं बना सके।

वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म प्यार की जीत में अपने संगीतबद्ध गीत एक दिल के टुकड़े हजार हुयेह्व की सफलता के बाद हुस्नलाल-भगतराम फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। मोहम्मद रफी की आवाज में कमर जलालाबादी रचित यह गीत आज भी रफी के दर्द भरे गीतों में विशिष्ट स्थान रखता है लेकिन दिलचस्प बात यह है कि हुस्नलाल-भगतराम ने यह गीत फिल्म प्यार की जीत के लिये नही बल्कि फिल्म सिंदूर के लिये संगीतबद्ध किया था।

फिल्म सिंदूर के निर्माण के समय जब हुस्नलाल-भगतराम ने फिल्म निर्माता शशिधर मुखर्जी को यह गीत सुनाया तो उन्होंने इसे अनुपयोगी बताकर फिल्म में शामिल करने से मना कर दिया। बाद मे निर्माता ओ. पी. दत्ता ने इस गीत को अपनी फिल्म प्यार की जीत में इस्तेमाल किया। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म चांद में अपने संगीतबद्ध गीत चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है की सफलता के बाद यह जोड़ी फिल्म जगत में चोटी के संगीतकारो में शुमार हो गयी। इस गीत से जुड़ा एक रोचक तथ्य है कि उस जमाने में गांवों में रामलीला के मंचन से पहले दर्शको की मांग पर इसे अवश्य बजाया जाता था। लता मंगेशकर और प्रेमलता की युगल आवाज में रचे-बसे इस गीत की तासीर आज भी बरकरार है ।

साठ के दशक मे पाश्चात्य गीत.संगीत की चमक से निर्माता निर्देशक अपने आप को नही बचा सके और धीरे धीरे निर्देशकों ने हुस्नलाल-भगतराम की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। इसके बाद हुस्नालाल दिल्ली चले गये और आकाशवाणी में काम करने लगे जबकि भगतराम मुंबई में ही रहकर छोटे-मोटे स्टेज कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगे। । भगतराम 26 नवंबर 1973 को बडी ही खामोशी के साथ इस दुनिया को अलविदा कह गये । हुस्नलाल इससे पहले 28 दिसंबर 1968 को चल बसे थे।

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